अखिलेश यादव ने रविवार (एक जनवरी) को पिता मुलायम सिंह यादव को किनारे कर समाजवादी पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली। इस दौरान मुलायम के करीबी रहे नेता भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ हो गए। सपा के अधिवेशन में मंच पर जिस समय अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया उस समय पार्टी के सह संस्थापक रेवती रमण सिंह, उपाध्यक्ष किरणमय नंदा, महासचिव और राज्य सभा सांसद नरेश अग्रवाल सहित कई मंत्री और विधायक मौजूद थे। इनमें से ज्यादातर मंत्री और विधायक लंबे समय से मुलायम के करीबी थे। इस कार्यक्रम के बाद बहुत कम नेता मुलायम से मिलने गए। जो नेता मुलायम के पास गए उनमें मंत्री गायत्री प्रजापति, एमएलसी आशु मलिक और राज्य सभा सांसद बेनी प्रसाद वर्मा शामिल थे।
किरणमय नंदा को मुलायम पश्चिम बंगाल से लाए थे और उन्हें पार्टी के दूसरे सबसे बड़े पद पर नियुक्त किया था लेकिन वे भी अखिलेश के साथ हो लिए। भूतकाल में वे मुलायम को अपनी प्रेरणा बताते थे। उन्होंने कहा, ”अखिलेश राष्ट्रीय नेता हैं और हरेक राज्य के लोग उन्हें जानते हैं। मैं नेताजी को नहीं छोड़ सकता। जब पार्टी बन रही थी तब से मैं उनके साथ हूं।” मुलायम के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ से आने वाले दो मंत्री बलराम यादव और दुर्गा प्रसाद यादव भी अखिलेश की तरफ चले गए। पूर्व पुलिस अफसर और बेसिक शिक्षा मंत्री अहमद हसन भी अखिलेश के पक्ष में खड़े नजर आए। हसन को भी मुलायम ही राजनीति में लाए थे। मुलायम सिंह को कॉलेज में पढ़ाने वाले वरिष्ठ नेता उदय प्रताप सिंह भी अखिलेश के कार्यक्रम में शामिल हुए।
अखिलेश के कार्यक्रम के दौरान यादव परिवार के अन्य नेता भी मौजूद रहे। इनमें बदायूं से सांसद धर्मेंद्र यादव, रामगोपाल के बेटे और फिरोजाबाद से सांसद अक्षय यादव, मैनपुरी सांसद तेज प्रताप यादव और इटावा जिला पंचायत अध्यक्ष अंशुल यादव शामिल थे। हालांकि परिवार की महिलाएं नहीं आईं। मुलायम ने हालांकि इस अधिवेशन को असंवैधानिक बताया लेकिन अखिलेश के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर कुछ नहीं कहा। इस बारे में परिवार कल्याण मंत्री रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि इस कदम को मुलायम का समर्थन है और विरोध केवल दिखावा है। सपा के गोरखपुर यूनिट के जिला सचिव अशोक यादव ने कहा, ”सब कुछ नेताजी की मर्जी से हुआ है। वे अपने बेटे की नियुक्ति का दोष नहीं लेना चाहते थे।”