उत्तर प्रदेश के कानपुर में रहने वाली लता देवी दिवाकर ने अपने घर पर शौचालय बनवाने के लिए अपना मंगलसूत्र बेच दिया। लता के घर में कोई शौचालय नहीं था, जिससे परिवार को काफी परेशानी होती थी। न्यूज एजंसी एएनआई के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘स्वच्छ भारत’ अभियान से प्रेरित होकर लता ने घर में शौचालय बनवाने की सोची। मगर इसके लिए उन्होंने सरकार की सहायता लेने की बजाय अपना मंगलसूत्र बेचकर पैसे इकट्ठा किए। लता ने एएनआई से कहा, ”हमें बहुत दिक्कत होती थी, पीएम नरेंद्र मोदी के अभियान से मुझे प्रेरणा मिली। आखिर में मैंने टॉयलेट बनवाने का फैसला किया।” लता का कहना है कि शौचालय एक मूल जरूरत है जो आभूषण से बढ़कर है। उन्होंने कहा, ”गहनों के मुकाबले शौचालय मूल जरूरत है इसलिए मैंने उन्हें (मंगलसूत्र) बेच दिया। सरकार से किसी तरह की मदद नहीं मिली।” इससे पहले, जुलाई में बिहार के सासाराम में एक महिला ने घर में शौचालय बनवाने के लिए मंगलसूत्र बेचा था। जिसके बाद रोहतास जिला प्रशासन ने उसे ‘संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम’ का ब्रांड एम्बेसडर बना दिया।
यूनिफॉर्म सिविल काेड को लेकर सरकार के विरोध में मुस्लिम संगठन, देखें वीडियो:
We used to face a lot of problems; finally decided to build the toilet after PM Narendra Modi’s campaign inspired me: Lata Devi Diwakar pic.twitter.com/hlAY7TZEO7
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) October 13, 2016
शौचालय बनवाने के ये दो प्रेरक उदाहरण भर नहीं है। जून 2016 में, राजस्थान के डूंगरपुर जिले के एक आदिवासी परिवार ने शौचालय बनाने के लिए अपनी आजीविका की प्रमुख साधन बकरी बेच दी तथा गहनों को गिरवी रख दिया। डूंगरपुर-रतनपुर मार्ग पर सड़क के किनारे एक झोपड़ी में रहने वाला कांति लाल रोत एक मिल में दिहाड़ी मजदूरी करता है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत नगरपरिषद डूंगरपुर ने विशेष अभियान चलाया और लोगों को शौचालय बनवाने के लिए समझाया। उसे जब शौचालय निर्माण के लिए प्रोत्साहन राशि के चार हजार रूपए मिले तो पूरे परिवार ने हाथों से गुड्ढा खोद लिया।
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शेष राशि मिलने के बाद आवश्यक सामग्री खरीद कर ऊपर का ढांचा और पानी की टंकी भी बना ली परंतु अब उनके पास कारीगरों को चुकाने के लिए राशि खत्म हो चुकी थी। कांति लाल की विधवा मां हर हाल में शौचालय बनवाना चाहती थी। मां की सलाह पर कांति लाल ने अपने घर की दैनिक जरूरतें पूरी करने वाली सात बकरियों में से एक बकरी पांच हजार रुपये में बेची और कारीगरों को मजदूरी दी। शौचालय के दरवाजे और अन्य सामग्री के लिए उसकी पत्नी गौरी ने अपनी शादी में पीहर से आई हुई चांदी की पायल गिरवी रखने के लिए दे दी। कांतिलाल ने बाजार में पायल को गिरवी रखकर चार हजार रुपये लिए और अपना शौचालय पूर्ण करवाया।