भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर कैम्पस में पिछले साल नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) का विरोध कर रहे छात्रों द्वारा फैज अहमद फैज की शायरी पढ़ने पर बवाल हुआ था। बाद में आईआईटी ने मामले की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया था। उस पैनल ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि फैज की शायरी पढ़ना “समय और स्थान के लिहाज से अनुपयुक्त” था। इसके साथ ही पैनल ने मामले में आरोपी पांच शिक्षकों और छह छात्रों की काउंसलिंग कराने का भी निर्देश दिया है। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि इन लोगों ने विरोध-प्रदर्शन में भाग लिया था जो वांछनीय नहीं था।
आईआईटी कानपुर ने छात्रों के एक समूह द्वारा 17 दिसंबर, 2019 को कैम्पस में फैज की कविता पढ़ने के मामले की जांच के लिए छह सदस्यों की एक जांच समिति गठित की थी। छात्रों पर आरोप था कि दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों की दिल्ली पुलिस द्वारा हुई कथित पिटाई के विरोध में और छात्रों के समर्थन में IIT छात्रों ने फैज कि कविता ‘हम देखेंगे’ का सामूहिक पाठ किया था।
आईआईटी-कानपुर के अस्थायी शिक्षक वशी मंत शर्मा ने अपनी शिकायत ने दावा किया था कि फैज की शायरी पाठ से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। शर्मा ने अपनी शिकायत में दावा किया था कि शायरी की इन दो पंक्तियों से उन्हें ठेस पहुंची है, “जब अरज़-ए-खुदा के काबे से, सब बुत उठवाए जाएंगे, हम अहल-ए-सफा मरदूद-ए-हराम, मनसंद पे बिठाए जाएंगे, सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे।”
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में शर्मा ने कहा था, “वे एक कविता कैसे गा सकते हैं जो कहती है कि मूर्तियों को गिराया जाएगा? यह मुगलों द्वारा भारत के आक्रमण को संदर्भित करता है और मेरी धार्मिक भावनाओं को आहत करता है।” आईआईटी प्रशासन ने समिति को यह जांच करने का काम सौंपा था कि क्या सभा के दौरान कही गई बातें या सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में “भड़काऊ, अपमानजनक और डराने वाली भाषा” का इस्तेमाल किया गया था या नहीं?
समिति के अध्यक्ष और संस्थान में उप निदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए पुष्टि की कि समिति ने पिछले सप्ताह ही रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। फैज की शायरी पढ़ने पर उन्होंने कहा, “समिति ने यह पाया कि जब शायरी पढ़ी गई तब शायद, समय और स्थान उपयुक्त नहीं थे। जिस व्यक्ति ने वह (कविता) सुनाया, वह इस दृष्टिकोण से सहमत हुआ और उसने एक नोट लिखा कि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचने पर उसे पछतावा है। तो यह मामला अब बंद हो चुका है।”
जब उनसे पूछा गया कि पैनल को कैसे लगा कि वह अनुपयुक्त था, तो उन्होंने कहा कि वातावरण विविधतापूर्ण है, लोग अलग-अलग संस्कृति, भाषा से यहां आते हैं। एक जो करता है, दूसरे को वो पसंद नहीं आ सकता है। हालांकि, अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि समिति “कविता की व्याख्या” में नहीं गई थी।