कुख्यात गैंगस्टर मुन्ना बजरंगी की उत्तर प्रदेश के बागपत जेल में हत्या कर दी गई। अरसे से पूर्वांचल के कई जिलों में मुन्ना की तूती बोलती रही है। कहा जा रहा है कि पुरानी अदावत ही जेल में मुन्ना के हत्या की वजह बनी। यूपी में सियासत और अपराध के कॉकटेल का नतीजा यह रहा है कि यहां समय-समय पर कई डॉन या गैंगस्टर हमेशा सिर उठाते रहते हैं। आईए एक नजर डालते हैं राज्य के ऐसे बाहुबलियों पर जिनका लिबास तो अभी नेताओं वाला है लेकिन उनके दामन पर कई संगीन अपराधों के छींटे लग चुके हैं।
अतीक अहमद : यूपी की राजनीति में अतीक अमहद की गिनती बाहुबली के तौर पर होती है। कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की लोकसभा सीट रही फुलपुर से अतीक सांसद रहे हैं। अतीक पर हत्या की कोशिश, अपहरण, और हत्या के करीब 42 मामले दर्ज हैं। साल 1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक अहमद का कच्चा चिट्ठा जारी किया था। इसमें बताया गया था कि अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट, इलाहाबाद ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं। 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद एक समय सपा नेता मुलायम सिंह के बेहद करीबी भी थे। हालांकि बाद में यूपी में बीएसपी सरकार के आने के बाद अतीक अहमद की पकड़ कमजोर होती चली गई।
रघुराज प्रताप सिंह : यूपी में रघुराज प्रताप सिंह को उनके चाहने वाले राजा भैया के नाम से जानते हैं। राजा भैया पर डीएसपी की हत्या का आरोप है। प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले राजा भैया के बारे में कहा जाता है कि उनके जिले में उनका अपना राज चलता है। रघुराज राज प्रताप सिंह की बेंती कोठी के पीछे 600 एकड़ के तालाब से कई तरह के किस्से जुड़े हैं। लोगों के बीच धारणा थी कि राजा भैया ने इस तालाब में घड़ियाल पाल रखे थे। वे अपने दुश्मनों को मारकर उसमें फेंक देते थे। हालांकि, राजा भैया इस लोगों का मानसिक दिवालियापन बताते हैं। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव से उन्होंने राजनीति में कदम रखा था। तब से वह लगातार विधायक बने हुए हैं। मंदिर आंदोलन के दौर में मुलायम ने उनका विरोध किया था। उनपर दंगों में भूमिका निभाने का आरोप था। यूपी में राजा भैया ठाकुरों और ब्राह्मणों की विरोधी राजनीति की एक धुरी बन चुके हैं।
मुख्तार अंसारी : मऊ विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रह चुके मुख्तार अंसारी कभी बहुजन समाज पार्टी के प्रमुख नेता और मायावती के बेहद करीबी थे। साल 2010 में उन्हें आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहने के कारण ही बीएसपी से निकाल दिया गया। कहा जाता है कि गैंगस्टर मुन्ना बजरंगी ने मुख्तार अंसारी के शह पर ही अपराध की दुनिया में कोहराम मचा रखा था। मुख्तार के बेहद करीबी मुन्ना बजरंगी ने दबंगई के दम पर ठेकेदारी, खनन, रेलवे ठेकेदारी जैसे क्षेत्रों में अपना कब्जा जमा रखा था। 1990 के दशक के शुरुआती दिनों में, मुख्तार अंसारी अपने आपराधिक गतिविधियों के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे। 1995 के आसपास उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और 1996 में विधायक बन गए। बीएसपी के 2010 में उन्हें आपराधिक गतिविधियों के लिए निष्कासित करने के बाद, उन्होंने अपने भाइयों के साथ अपनी पार्टी क्वैमी एकता दल का गठन किया।
अमरमणि त्रिपाठी : अमरमणि पर हत्याओं समेत कई मामले दर्ज हैं। कवियित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में उम्रकैद की सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी को राज्य के प्रभावशाली राजनेताओं में गिना जाता है। सपा, बसपा और भाजपा में जो भी लखनऊ के पंचम तल (मुख्यमंत्री दफ्तर) पर आया अमरमणि उसके खास हो गए। न कोई विचारधारा की दुहाई न कोई सिद्धांतों का हवाला, साइकिल से लेकर सिविल तक सारे ठेकों की राजनीति ही इस तरह के नेताओं की सियासत का आधार रहा है।
हरिशंकर तिवारी : गोरखपुर के रहने वाले हरिशंकर तिवारी सूबे के एक कुख्यात बाहुबली नेता रहे हैं। रेलवे से लेकर पीडब्ल्यूडी की ठेकेदारी तक में इनका कब्जा है। इनके खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, फिरौती और अपहरण के 25 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं। कहा जाता है कि हरिशंकर तिवारी जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले पहले नेता हैं। उसके बाद ही ये सिलसिला चल पड़ा था।
