आगरा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल(सीआरपीएफ) के एक रिटायर्ड जवान ने बैंक से नकदी ना मिलने से परेशान होकर खुदकुशी कर ली। मृतक राकेश चंद कई बार पैसे निकलवाने के लिए गए लेकिन हर बार उन्‍हें खाली हाथ लौटना पड़ा। इससे दुखी होकर उन्‍होंने खुद को लाइसेंसशुदा बंदूक से गोली मार ली। उन्‍हें इलाज के लिए पैसों की जरुरत थी। राकेश को सीआरपीएफ में रहने के दौरान कश्‍मीर में तैनाती के समय 1990 में पांच गोलियां लगी थी। इसके बाद उनका ऑपरेशन कर गोलियां निकाली गई थी। राकेश आतंकियों की गोलियां तो झेल गए लेकिन नोटबंदी ने उनका जीवन समाप्‍त कर दिया। उनके बेटे सुशील ने बताया कि सीआरपीएफ में रहने के दौरान गोली लगने के बाद से उनके हार्ट में समस्‍या थी। वे साल 2012 में हैड कांस्‍टेबल पद से रिटायर हुए थे। कई दिनों से वहले ताजगंज स्थित स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा से पैसे निकलवाने जा रहे थे। लेकिन हर रोज खाली हाथ लौटते थे। राकेश आगरा के बुढ़ाना गांव के रहने वाले थे। उनके बेटे के अनुसार, ”मेरे पिता को हार्ट के इलाज के लिए पैसों की जरुरत थी। उन्‍हें 15 हजार रुपये की पेंशन मिलती थी। डॉक्‍टर के पास जाने और दवाइयों के लिए उन्‍हें 6-7000 रुपये चाहिए थे।”

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर को 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने का एलान किया था। इसके बाद से लोगों को पैसों की तंगी का सामना करना पड़ा है। देशभर के बैंक और एटीएम में अभी तक पर्याप्‍त पैसा नहीं पहुंचा है। इसके चलते लंबी लाइने बरकरार हैं। हाल के दिनों में लोगों का गुस्‍सा भी फूटने लगा है। कई जगहों पर बैंककर्मियों से मारपीट, झगड़ा, पथराव और सड़कों को जाम करने की खबरें सामने आई हैं। रिजर्व बैंक की नोट छापने की प्रिंटिंग प्रेसों मे तीन शिफ्टों में काम हो रहा है। लेकिन बावजूद इसके लिए पर्याप्‍त नकदी की पूर्ति नहीं हो पा रही। देश में रोजाना 50 करोड़ नोट ही छापे जा सकते हैं। इसके चलते जिन बैंकों को 50-60 लाख प्रतिदिन चाहिए होते हैं उन्‍हें केवल 5-6 लाख रुपये ही मिल रहे हें। ताजा रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के एक महीने बाद भी बाजार में केवल 5 लाख करोड़ रुपये ही वापस आए हैं जबकि बैंकों में 14 लाख करोड़ रुपये जमा होने की संभावना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले के एक महीने के बाद अब जनता का मूड बदल रहा है। लोगों में अब इस फैसले के चलते हो रही दिक्‍कतों के कारण गुस्‍सा बढ़ रहा है। हफिंगटन पोस्‍ट-बीडब्‍ल्‍यू-सीवोटर की ओर से कराए गए ओपिनियन पोल में सामने आया है कि लोग नोटबंदी के फैसले को अब परेशानी मानने लगे हैं। नए पोल में नोटबंदी के चलते लाइन में लगने के काम को सही मानने वाले लोगों की संख्‍या गांवों में 86 से घटकर 80 प्रतिशत से नीचे आ गई। सर्वे के अनुसार ग्रामीण व अर्ध शहरी क्षेत्रों में नोटबंदी से पड़े असर ने लोगों के जीवन पर बड़ा असर डाला है। वहीं शहरी क्षेत्रों में हालात पहले जैसे ही है।