नियमित डीजीपी की तैनाती से पहले संघ लोक सेवा आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार से मुकुल गोयल को हटाए जाने का कारण पूछा है। इसके जवाब में राज्य सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगा और भर्ती घोटाले में सस्पेंशन का जिक्र किया है। सरकार ने जवाब में यह भी कहा कि लापरवाही, अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार के कारण मुकुल गोयल को हटाया गया है।

इसमें यह भी कहा गया कि प्रदेश में जीरो टॉलरेंस की नीति लागू है, ऐसे में सिर्फ वरिष्ठता ही चयन का आधार नहीं हो सकता, क्षमता भी जरूरी है। सरकार की तरफ से जो जवाब दिया गया उसमें कहा गया कि मुजफ्फरनगर दंगों के समय मुकुल गोयल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर थे। इसके साथ ही पुलिस भर्ती घोटाले में भी उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इसके अलावा, डीजीपी रहते उन पर अकर्मण्यता के आरोप थे और 11 मई को उन्हें डीजीपी के पद से हटा दिया गया था।

बता दें कि योगी सरकार की ओर से प्रदेश में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा आयोग को नामों की लिस्ट भेजी गई थी, जिसे यूपीएससी ने वापस लौटा दिया है। इस लिस्ट में मुकुल गोयल का नाम भी शामिल था। इसी पर यूपीएससी की ओर से सरकार से जवाब मांगा गया था। यह प्रस्ताव यूपीएससी ने वापस लौटा दिया। कहा जा रहा है कि अब सरकार आयोग से मांगी गई अतिरिक्त सूचनाओं के साथ नया प्रस्ताव भेजेगी।

फिलहाल डॉ. डीएस चौहान प्रदेश के डीजीपी का प्रभार संभाल रहे हैं। वह वर्ष 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। उधर, यूपीएससी ने कहा कि 22 सितंबर, 2006 को पारित सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रम में नियुक्त किए गए डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो सालों का होना चाहिए। अगर इस बीच वह रिटायर हो रहे हों तब भी डीजीपी को 2 साल का कार्यकाल दिया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने कार्यकाल पूरा होने से पहले डीजीपी को हटाने के लिए कुछ शर्तें तय की हैं। आयोग ने कहा कि अगर इन शर्तों के अनुसार, कोई मामला मुकुल गोयल के खिलाफ है तो उनके दस्तावेज दिए जाएं और अगर नहीं हैं तो क्या मुकुल गोयल को हटाया जाना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अवमानना नहीं है?

इतना ही नहीं आयोग ने राजस्थान सरकार से यह भी कहा कि नए डीजीपी की नियुक्ति के लिए उन सभी अधिकारियों का सेल्फ अटेस्टेड बायोडाटा उपलब्ध करवाया जाए, जिनकी सेवा अवधि 30 साल पूरी हो गई है और वह एडीजी रैंक से कम ना हों।