नरेंद्र मोदी के सहारे उप्र में सरकार बनाने की उम्मीद में उतरी भाजपा की राह को पुराने पदाधिकारी ही मुश्किल बना रहे हैं। एक जुटता दिखाने के लिए सार्वजनिक मंचों पर विरोधी पदाधिकारियों को भले ही साथ दिखाया जा रहा है। लेकिन अंदरूनी तौर पर भाजपा को उनके खुद के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से जूझना पड़ रहा है। इसी कड़ी में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह के नोएडा सीट से उम्मीदवार घोषित होते ही विरोधी नेता लामबंद हो गए हैं। प्रतिष्ठा का वास्ता देकर नाराजगी मिटाने की कोशिश की जा रही है। उधर, राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि नोएडा सीट को परंपरागत भाजपा समर्थक सीट मानना बड़ी भूल साबित हो सकती है। 2012 के विधानसभा और 2014 के उपचुनाव के मुकाबले 2017 में कई बड़े बदलाव होने के चलते प्रमुख दलों के बीच कांटे की टक्कर है। ऐसे में अन्य दलों के मुकाबले भाजपा में बढ़ा असंतोष स्थानीय स्तर पर नुकसान की वजह बन सकता है।
जानकारों की माने तो पंकज सिंह को भाजपा के प्रदेश स्तर के बड़े नेता के रूप पहचान बनाने में अभी लंबा समय लगेगा। एकाएक नोएडा से प्रत्याशी बनाए जाने के बाद स्थानीय गुटबाजी को समझना और साथ रहने वाले विरोधियों की पहचान करना भी बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा जातिगत आकंड़े के आधार पर भी राजपूत और सवर्ण नेता के रूप में पंकज सिंह को कोई बड़ा फायदा नहीं मिलता दिख रहा है। सपा ने करीब 2 महीने पहले ही प्रत्याशी के रूप में अशोक चौहान का नाम तय कर दिया था। ठाकुर बिरादरी के अशोक चौहान तब से अपना जनसंपर्क लोगों के बीच कर रहे थे।
3 दिनों पहले उनकी जगह पर सपा ने सुनील चौधरी को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। 2012 विधान सभा चुनाव में भी सुनील चौधरी सपा के प्रत्याशी थे। तब करीब 42 हजार वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। इसी तरह करीब दो महीने पहले ही बसपा ने रविकांत मिश्रा को प्रत्याशी घोषित कर दिया था। ब्राह्मण रविकांत मिश्रा भी तब से लगातार जनसंपर्क कर समर्थन मांग रहे हैं। जबकि भाजपा ने पंकज सिंह के नाम का ऐलान महज दो दिन पहले हुआ है। सोमवार को पंकज सिंह नोएडा पहुंचे हैं। जन संपर्क के लिहाज से भी सपा और बसपा के मुकाबले भाजपा को कम समय मिल रहा है। वहीं, सपा और बसपा, दोनों दलों के प्रत्याशी सालों से यहां हैं और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े हैं। नोएडा के करीब 5.20 लाख मतदाताओं में सर्वाधिक संख्या ब्राह्मण मतदाताओं की है। दूसरे नंबर पर वैश्य हैं।
बताया जा रहा है कि वैश्य समुदाय के अलावा पंजाबियों का भी एक बड़ा तबका यहां रहता है। हालांकि ठाकुर, गुर्जर, यादव, मुसलिम समेत अन्य वर्गों की भी काफी बड़ी आबादी यहां है। नोएडा से भाजपा की मौजूदा विधायक विमला बाथम वैश्य समुदाय से हैं। 2012 में पहली बार नोएडा अलग विधानसभा बनी थी। पहली बार हुए चुनाव में विधायक के रूप में डॉक्टर महेश शर्मा ने 77,319 मतों से जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर बसपा के ओमदत्त शर्मा (49,643), तीसरे नंबर पर सपा के सुनील चौधरी (42,071) और चौथे नंबर पर कांग्रेस के डॉक्टर वीएस चौहान (25,482) रहे थे। इससे पहले नोएडा का इलाका दादरी विधानसभा का हिस्सा था। 2007 में बसपा के सतवीर गुर्जर ने 75,346 वोट लेकर जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर भाजपा के नवाब सिंह नागर, तीसरे नंबर पर सपा के अशोक चौहान और चौथे नंबर पर कांग्रेस के रघुराज सिंह रहे थे। सतवीर गुर्जर ने करीब 25 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। वहीं, 2014 में हुए उप चुनाव में भाजपा की विमला बाथम को करीब 1 लाख वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर सपा प्रत्याशी काजल शर्मा को महज 41,481 और 17 हजार वोट लेकर तीसरे नंबर पर कांग्रेस के राजेंद्र अवाना रहे थे।
राजनैतिक जानकारों का तर्क है कि 2014 उपचुनाव में भाजपा के पक्ष में हुए मतदान को इस बार जैसा मानना पूरी तरह से गलत है। भाजपा की लहर के अलावा 2014 में बसपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। वहीं, 2012 के चुनाव में जहां भाजपा को 77,319 मत मिले थे। दूसरी तरफ सपा को 42071 और कांग्रेस को 25,482 वोट मिले थे। इस बार दोनों के बीच गठबंधन है। यानी 2012 के आंकड़े के आधार पर भी सपा- कांग्रेस गठबंधन को 67 हजार मत मिल रहे हैं। जबकि भाजपा को 77 हजार मिले थे। महज 10 हजार के इस अंतर को बनाए रखने के लिए भाजपा को कई स्तरों पर मोर्चाबंदी करने पड़ेगी।