नासिक में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाले शिवसेना (ठाकरे गुट) में बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिला है। वरिष्ठ नेता सुधाकर बडगुजर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। बडगुजर ने कुछ दिन पहले संगठनात्मक बदलावों को लेकर पार्टी में नाराजगी की बात सार्वजनिक रूप से कबूली थी। उन्होंने यहां तक कहा था कि नासिक में 10 से 12 नेता ठाकरे गुट से असंतुष्ट हैं। लेकिन इस बयान के चंद घंटे बाद ही संजय राउत के एक फोन कॉल पर बडगुजर की पार्टी से छुट्टी कर दी गई।
यह पूरा घटनाक्रम तब और नाटकीय हो गया जब ठाकरे गुट के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने नासिक में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ही संजय राउत ने नासिक के पूर्व जिलाध्यक्ष दत्ता गायकवाड़ को फोन किया और बडगुजर को पार्टी से बाहर करने का फैसला सुनाया गया। ठाकरे गुट के जिला प्रमुख डी जी सूर्यवंशी ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। खास बात ये रही कि जिस बडगुजर के मुद्दे पर पूरी हलचल मची, वो खुद इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में नदारद रहे।
बडगुजर ने कार्यकर्ताओं में भरोसे की कमी का आरोप लगाया था
बडगुजर फिलहाल असमंजस में हैं। उन्होंने पहले ही आरोप लगाया था कि संगठनात्मक फेरबदल के चलते कार्यकर्ताओं में भरोसे की कमी पैदा हुई है और इसी कारण कई नेता नाराज हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब राजाभाऊ सांसद बने थे, तब उन्होंने और विलास शिंदे ने जीत दिलाने में एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। उनका दावा है कि मजबूत संगठन की वजह से वह जीत संभव हुई थी।
ठाकरे गुट के नेताओं का कहना है कि संगठन में बदलाव के बाद से बडगुजर लगातार दूरी बना रहे थे। पार्टी के बुलाने पर भी वे नहीं आ रहे थे और अंततः उनके खिलाफ ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के आरोप में कार्रवाई की गई।
अब सवाल यह है कि नासिक जैसे महत्वपूर्ण जिले में इस निष्कासन का असर ठाकरे गुट पर कैसा पड़ेगा, खासकर आगामी मनपा (महानगरपालिका) चुनावों के ठीक पहले? संगठन के भीतर असंतोष की लहर कहीं पार्टी को भीतर से कमजोर तो नहीं कर रही? इन सवालों के जवाब आने वाले वक्त में तय होंगे, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि बडगुजर की विदाई ने ठाकरे गुट को एक नई राजनीतिक चुनौती के सामने ला खड़ा किया है।