राज्य के धरोहर कार्यकर्ता और दो अन्य गैर-सरकारी संगठनों ने बंबई हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर कर लक्ष्मीकांत पारसेकर की सरकार के उस हालिया कदम को चुनौती दी है, जिसके तहत उसने कानून में संशोधन करते हुए नारियल के पेड़ को ताड़ करार दिया है। गोवा में पीठ के समक्ष याचिका दायर कर अनुरोध किया गया कि राज्य सरकार को वह कानून आगे बढ़ाने से रोका जाना चाहिए, जो नारियल के पेड़ को अब ‘पेड़’ का दर्जा नहीं देता।

धरोहर कार्यकर्ता प्राजल साखरदांडे, गैरसरकारी संगठनों वनशक्ति (मुंबई) और गोवा फॉर गिविंग ने गोवा वृक्ष संरक्षण कानून, 1984 में संशोधन को अवैध करार दिया है। यह याचिका अनुरोध करती है कि गोवा वृक्ष संरक्षण कानून, 1984 के तहत नारियल के पेड़ को अब ‘पेड़’ नहीं माने जाने के आधार पर अगले चरण की कार्यवाही करने से प्रतिवादियों को रोका जाए। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह संशोधन इस कानून के तहत ‘नारियल के पेड़’ को मिले व्यापक संरक्षण को हटा देता है। इसका नतीजा यह है कि नारियल के जो पेड़ तय ऊंचाई और मोटाई के नहीं हैं, उन्हें वृक्ष प्राधिकरण से अनुमति के बिना ही अंधाधुंध काटा जा सकता है।

याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन कानून के तहत संरक्षित ‘पेड़’ की परिभाषा बदल देता है ताकि उन पेड़ों को इस श्रेणी से बाहर रखा जा सके, जिनके तने का व्यास जमीन से एक मीटर की ऊंचाई पर 10 सेंटीमीटर से कम का है। पहले संबंधित पैमाना यह था कि तने का व्यास जमीन से 30 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर पांच सेंटीमीटर का होना चाहिए। याचिका में कहा गया कि इस संशोधन का नतीजा यह है कि जो पेड़ 10 सेंटीमीटर वाले मापदंड को पूरा नहीं करता है, उसे वृक्ष प्राधिकरण की अनुमति के बिना ही गिराया जा सकता है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि गोवा वृक्ष संरक्षण कानून, 1984 को गोवा, दमन और दीव के क्षेत्रों में पेड़ों के संरक्षण के लिए लागू किया गया था। इस कानून ने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई रोकने व नए पेड़ लगाने को प्रोत्साहन देने के लिए एक प्रक्रिया बनाई।

नए कानून के पर्यावरणीय प्रभाव की ओर संकेत करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि पर्यावरण के मौजूदा परिदृश्य में चूंकि नदी से समुद्र में पहुंचने वाले पानी की मात्रा कम हो गई है, ऐसे में तट के नजदीक की जमीन लवणता अतिक्रमण प्रक्रिया के तहत ज्यादा खारी हो सकती है। इसका नतीजा यह होगा कि तट के आसपास की जमीन बंजर हो जाएगी। इस प्रक्रिया ने भारत के अन्य हिस्सों, जैसे गुजरात में अकथित नुकसान करना शुरू कर दिया है।