निर्भया सामूहिक बलात्कार, धौला कुआं सामूहिक बलात्कार और कैलाश सत्यार्थी नोबेल पुरस्कार प्रशस्ति-पत्र चोरी जैसे कई मामलों को सुलझाने में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेटिक्स एंड कम्युनिकेशन (आइआइसी) का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन मामलों में डीयू के इस संस्थान के छात्रों ने पुलिस को अति महत्त्वपूर्ण सुराग मुहैया कराने में तकनीकी रूप से मदद की।

दिसंबर 2012 में फिजियोथेरेपी की 23 साल की छात्रा के साथ बर्बर तरीके से एक चलती बस में सामूहिक बलात्कार की घटना हुई थी। छात्रा को बाद में चलती बस से फेंक दिया गया था। 29 दिसंबर को छात्रा की मौत सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में हो गई थी। इस मामले को सुलझाने का पहला सुराग बस के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से मिला था, जिसमें छात्रा के साथ बलात्कार हुआ था। संस्थान के सहायक प्रोफेसर संजीव सिंह के मुताबिक पुलिस इस फुटेज को लेकर उनके पास पहुंची थी। फुटेज में पाया गया कि बस पर ‘यादव’ लिखा हुआ था, जिसके बाद पुलिस जांच टीम आरोपियों तक पहुंच सकी थी। धौला कुआं में साल 2010 में एक बीपीओ कंपनी की महिला कर्मचारी के साथ पांच लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था। इस मामले की फुटेज भी पुलिस प्रोफेसर सिंह के पास लेकर आई थी।

सिंह ने बताया कि कैमरे में एक वाहन की फोटो मिली थी। हमने फुटेज से सुराग निकालने की कोशिश की और पाया कि इसमें एक अतिरिक्त हेडलाइट थी और उसमें ‘तिरपाल’ रखा हुआ था। इसके बाद इस मामले के आरोपी गिरफ्तार हुए और पता चला कि इस वाहन का इस्तेमाल ज्यादातर मेवात क्षेत्र के लोगों ने किया था। बाद में वाहन भी मिल गया। दिल्ली में जब नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की नोबेल पुरस्कार प्रतिकृति और प्रशस्ति-पत्र कालकाजी से चोरी हुआ तो पुलिस इसका पता लगाने को लेकर बेहद दबाव में थी। डीयू के छात्रों ने इस मामले में भी दिल्ली पुलिस की मदद की और आरोपी की पहचान के लिए कई घंटों तक सीसीटीवी फुटेज को खंगाला। इसी के जरिए आरोपियों का पता चला था। डीयू के कंप्यूटर सेंटर के संयुक्त निदेशक पद पर भी काम करने वाले सिंह ने कहा कि पुलिस हमारे पास काफी उम्मीदें लेकर आती है और हम उनकी मदद करने की हर कोशिश करते हैं।