उत्तराखंड में जहां एक और खेती का दायरा लगातार घटता जा रहा है। खास तौर से तीन मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर में लगातार बढ़ते औद्योगिक क्षेत्र और आवासीय क्षेत्र खेती की जमीन के दायरे को घटा रहे हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद इन तीन जिलों में तेजी के साथ औद्योगिकीकरण हुआ और संपत्ति का कारोबार तेजी से फला फूला।

वहीं दूसरी ओर राज्य में जैविक खेती का प्रचलन तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है। हाल ही में उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी के नेतृत्व में विधायकों का एक दल जर्मनी सहित आधा दर्जन देशों की यात्रा पर गया था। जहां पर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए क्या तरीके अपनाए जा रहे हैं, उनको लेकर अध्ययन किया गया।उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी का कहना है कि जर्मनी सहित कई देशों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जो तकनीक अपनाई जा रही है, उसे उत्तराखंड में यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार धरातल पर उतारा जाएगा।

मौजूदा दौर में उत्तराखंड में जैविक खेती का क्षेत्रफल बढ़ गया है। यह राज्य में खेती के कुल क्षेत्रफल का 36 फीसद हो गया है। उत्तराखंड में खेती को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। 9 नवंबर 2000 उत्तराखंड गठन के समय राज्य में खेती के अधीन 7.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल था। जो राज्य के गठन के 22 साल बाद घट कर 6.48 लाख हेक्टेयर हो गया है। जो कृषि विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय है।

कृषि के जानकार कहते हैं कि यह सब राज्य के गठन के बाद राज्य में बढ़ते हुए औद्योगिकीकरण और विभिन्न गांवों पर पड़े शहरीकरण के प्रभाव के कारण हुआ है। इससे खेती को तो अलग नुकसान हुआ, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र का पर्यावरण भी प्रभावित हुआ।हरिद्वार उधम सिंह नगर देहरादून में बासमती चावल, देहरादून के चाय बागान और लीची के बगीचे लुप्त होने के कगार पर है। देहरादून की बासमती की खुशबू तो लगभग खत्म हो चुकी है।

गणेश जोशी का कहना है कि राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए 2019 में जैविक कृषि अधिनियम लागू किया गया। परिणाम स्वरूप राज्य में जैविक कृषि का क्षेत्रफल बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि जैविक खेती के अलावा पारंपरिक खेती को भी बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार नीति बना रही है।