तमिलनाडु के वेल्लोर और कांचीपुरम जिले में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने 16 बच्चों सहित 13 परिवारों के 42 सदस्यों को बंधुआ मजदूरी की कैद से छुटकारा दिलवाया। ये लोग पिछले पांच से ज्यादा सालों से दोनों जिलों के अलग-अलग क्षेत्रों में लकड़ी के कारखानों में काम कर रहे थे। टीओआई में छपी एक खबर के मुताबिक कांचीपुरम के ओलुंगावाड़ी के नटराज और उनके रिश्तेदारों ने इन लोगों को बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर किया था। इन मजदूरों का कहीं भी आना-जाना प्रतिबंधित था। छोटे बच्चों को स्कूल जाने की भी अनुमति नहीं थी।

एक गुप्त सूचना के बाद कांचीपुरम के सब कलेक्‍टर ए सर्वनन और रानीपेट के सब कलेक्टर इलमभवथ ने एक ही समय पर दोनों ठिकानों पर छापेमारी कर इन लोगों को बंधुरा मजदूरी के जुल्म से आजाद कराया। बचाव अभियान से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि चूंकि पीड़ितों को बंधक बनाकर उनसे मजदूरी कराने वाले उनके करीबी रिश्तेदार थे इसलिए अधिकारियों ने खुफिया सूचना के लीक होने से बचने के लिए अपने-अपने क्षेत्र में सुबह 9:30 एक बचाव अभियान चलाया।

बचाए गए बंधुआ मजदूरों के असोसिएशन के गोपी ने बताया कि राजस्व अधिकारियों को देखकर 60 साल बुजुर्ग काशी उनके पैरों में गिर गए और खुद को रिहा कराने की भीख मांगने लगे। गोपी ने ही बंधुआ मजदूरी से जुड़ी खुफिया जानकारी अधिकारियों को दी थी।गौरतलब है कि आठ परिवारों के 10 बच्चों सहित 27 अन्य लोगों के साथ कासी को बचाया गया था। वे कांचीपुरम जिले के कोन्नरीकुप्पम गांव में एक लकड़ी काटने के कारखाने में काम कर रहे थे। बुजुर्ग एक दशक से अधिक समय से ओलुंगवाड़ी के नटराज के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने नटराज से 1,000 रुपए एडवांस में लिए थे।

रानीपेट के सब कलेक्‍टर इलंभवथ की अगुआई वाली टीम ने 14 लोगों को छुड़ाया था। इनमें छह बच्चे भी शामिल थे। ये लोग वेल्लोर जिले के नेमिली तालुका के परुवामेदु गांव में लकड़ी के कारखाने में काम कर रहे थे। शुरुआत जांच में पता चला कि इन लोगों ने 9 से 25 हजार रुपए तक का उधार लिया था। इस उधार को चुकाने की कोशिश में ही ये लोग पिछले कई वर्षों से बंधुआ मजदूरी के जाल में फंसे थे।