उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने विवादास्पद देवस्थानम बोर्ड भंग कर और उसे 9 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में वापस लेने का एलान कर उत्तराखंड की राजनीति में ब्राह्मण पत्ता खेल कर राज्य की राजनीति को बदल दिया है और जनता पार्टी के पहाड़ के परम्परागत ब्राह्मण मतदाताओं की नाराजगी दूर करने का एक बड़ा दांव चला है।

धामी ने अपनी सरकार बनने पर देवस्थानम बोर्ड भंग करने का ऐलान किया था. पूरे राज्य में ब्राह्मणों ने जगह-जगह भाजपा सरकार और उसके मुखिया रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत के पुतले फूंके थे दो सालों तक यह आंदोलन चलता रहा जिसने भाजपा आलाकमान को चिंता में डाल दिया था। हरिद्वार कुंभ में साधु-संतों के जमावड़े से पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस मुद्दे पर अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। उनकी जगह तीरथ सिंह रावत ने ली, जिन्होंने सत्ता में आते ही देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार करने का ऐलान किया।

अपने विवादास्पद बयानों के कारण सत्ता से बेदखल हुए तीरथ सिंह रावत की जगह युवा पुष्कर सिंह धामी ने ली तो उन्होंने ब्राह्मणों की नाराजगी को देखते हुए प्रधानमंत्री के केदारनाथ दौरे के एक दिन पहले तीर्थ पुरोहितों को केदारनाथ धाम में वचन दिया कि वे 30 नवंबर तक देवस्थानम बोर्ड के बारे में ऐतिहासिक और निर्णायक फैसला करेंगे।

धामी ने 30 नवंबर की सुबह देवस्थानम बोर्ड भंग करने का ऐलान किया और 6 दिसंबर को अपने मंत्रिमंडल की बैठक में देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की अपनी घोषणा परमुहर लगवा दी। साथ ही 9 दिसंबर से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में इस विवादास्पद अधिनियम को वापस लेने का प्रस्ताव सदन के पटल पर रखने और उसे पारित कराने का फैसला किया।

त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में ब्राह्मण मतदाता भाजपा से पूरी तरह दूर चला गया था और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर पूरे प्रदेश में ब्राह्मण कार्ड खेलकर अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूूत की थी। उधर, दलित नेता यशपाल आर्य के भाजपा छोड़ने और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में रह रहे किसान आंदोलन के कारण सिख मतदाताओं के नाराज होने के कारण भाजपा अपने परंपरागत मतदाता ब्राह्मणों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती थी।

धामी ने भाजपा के वरिष्ठ नेता राज्यसभा के पूर्व सदस्य और ब्राह्मण समुदाय में अपनी अच्छी पैठ रखने वाले मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की। 30 नवंबर से तीन दिन पहले ध्यानी समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए तीन कैबिनेट मंत्रियों सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल व स्वामी यतीश्वरानंद की मंत्रिमंडलीय उपसमिति गठित की और साथ ही उपसमिति को दो दिन के भीतर अपनी संस्तुति देने को कहा था।

मंत्रिमंडलीय उपसमिति की रिपोर्ट मिलते ही मुख्यमंत्री धामी ने बिना देर किए 30 नवंबर को देवस्थानम बोर्डभंग करने का एलान किया।
देवस्थानम बोर्ड वापस लेने के फैसले के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं कि देव स्थान हमारे लिए सर्वोपरि रहे हैं। आस्था के इन केंद्रों में सदियों से चली आ रही परंपरागत व्यवस्था का हम सम्मान करते हैं। गहन विचार-विमर्श और सर्व सहमति के बाद ही सरकार ने देवस्थानम अधिनियम को वापस लेने का निर्णय लिया है।

दूसरी ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में हार के डर से डरी हुई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने आनन-फानन में देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का फैसला लिया है।

राज्य की जनता भाजपा की असलियत को पूरी तरह समझ गई है कि वह धर्म विरोधी है। जिस हिंदू धर्म का ढिंढोरा पीट कर भाजपा सत्ता में आई थी उस धर्म की सदियों से चली आ रही परंपरागत भावनाओं एवं धारणाओं को भाजपा ने अपने शासनकाल में सत्ता के अहंकार में कुचला है अब भाजपा चुनाव के डर से मगरमच्छ के आंसू बहा रही है जिसका फायदा भाजपा को विधानसभा चुनाव में नहीं मिलने वाला है