दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन के संविधान में संशोधन विवाद पर संचालक मंडल और शिक्षक समुदाय बंट गया है।
चर्च के प्रतिनिधि माने जाने वाले दी चर्च आफ नार्थ इंडिया (सीएनआइ) के महासचिव अलवान मसीह ने कहा है कि इस कदम पर काफी विचार विमर्श किया गया है कि इसके संविधान में संशोधन की जरूरत है।
लेकिन यह सिर्फ चर्च या प्राचार्य को अधिकार प्रदान करने के लिए नहीं है, बल्कि यह संस्थान और इसमें पढ़ाई करने वाले छात्रों के हित में है। विश्वविद्यालय के शिक्षक चर्च आफ नार्थ इंडिया (सीएनआइ) के इस कदम प्राचार्य के बचाव के तौर पर देख रहे हैं। इसके तहत इसके प्राचार्य वालसन थंपू और पादरी को इसके संचालन के लिए व्यापक अधिकार मिल जाएंगे।
इस बीच इस मसले पर कालेज के अध्यपकों ने चिंता जताई है। उन्होंने प्रबंध समिति से अनुरोध किया है कि थंपू के अवकाश ग्रहण करने तक संशोधन प्रक्रिया को टाल दिया जाए। थंपू के कदम का कालेज के पुराने छात्रों ने भी विरोध किया है। उन्होंने इस प्रस्ताव को सेंट स्टीफन को ईसाई बस्ती बनाने का कदम बताया है। थंपू अगले साल फरवरी में अवकाश ग्रहण करने वाले हैं। अगर प्रस्तावित संशोधन को स्वीकार कर लिया जाए, तो वह तत्काल अध्यक्ष के साथ एससी (विद्वत परिषद) के सबसे प्रभावशाली सदस्य हो जाएंगे।
वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के साथ 37 शिक्षकों ने कालेज के प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को हस्ताक्षर कर वालसन थंपू के किसी भी संशोधन को स्वीकार न करने की अपील की। रविवार शाम को इस पत्र को डूटा की ओर से जारी किया गया। इसमें सेंट स्टीफन कालेज के 37 शिक्षकों ने प्राचार्य के सुझाव का विरोध किया है। इसमें कालेज के कमोवेज हर विभाग के शिक्षकों ने दस्तखत किए हैं।
शिक्षक संगठन एएडी ने सेंट स्टीफंस कालेज के प्राचार्य और चर्च के पदाधिकारियों की ओर से कॉलेज के आंतरिक प्रशासन में हस्तक्षेप पर गंभीर चिंता और आपत्ति व्यक्त की है। एक राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान के मूलभूत सिद्धांतों और आधारशिला पर यह कुठाराघात कुछ संकुचित स्वार्थ ताकतों की ओर से किया जा रहा है। इसका षड्यंत्रकारी प्रतिनिधत्व कॉलेज के प्राचार्य कर रहे लगते हैं, जो कि जल्द ही रिटायर होने वाले हैं।
एएडी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि संगठन ऐसे प्रयास की निंदा करता है, जिससे दिल्ली विश्वविद्यालय के नियमों का उल्लंघन होता हो। संगठन शिक्षकों की सेवा शर्तों से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ का पुरजोर विरोध करता है। एएडी ने विश्वविद्यालय से मांग की है कि वह किसी भी ऐसे विनाशकारी षड्यंत्र को रोकें जिससे कि डीयू के नियमों की अवहेलना होती है। एएडी ने दावा किया है कि जिस हड़बड़ी में ये प्रस्ताव थोपे जा रहे हैं, उससे इस बात की बू आती है कि एक ऐसे प्राचार्य जिनकी अपनी योग्यता विवादों के घेरे में है। इन प्रस्तावित संशोधनों को तत्काल वापस लिया जाए और प्रबंध समिति से इन्हें रद्द करे।
प्राचार्य ने जो मसविदा संशोधन पेश किया है, उसमें उन्होंने प्रस्ताव किया है कि प्राचार्य को छात्र या स्टाफ के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार दिया जाए भले ही संचालन मंडल की राय कुछ भी हो। थंपू ने कालेज के संचालन में सीएनआइ को अधिक अधिकार दिए जाने की भी वकालत की है। उन्होंने सुप्रीम काउंसिल को फैकल्टी की नियुक्ति करने और दाखिले का अधिकार देने और संचालक मंडल (जीबी) के पुनर्गठन पर जोर दिया है। संशोधन में यह प्रस्ताव भी किया गया है कि अभी कालेज का संचालन करने वाले सेंट स्टीफन कालेज ट्रस्ट के स्थान पर सेंट स्टीफन एजुकेशनल सोसाइटी का गठन किया जाए जिसे स्टीफन जैसे निजी संस्थान देश भर में खोलने का अधिकार हो। मसीह संचालक मंडल के सदस्य भी हैं। जीबी की सोमवार की होने वाली बैठक में इस संबंध में फैसला किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर संशोधनों को लेकर आशंकाएं हैं। बैठक में सभी पर विचार विमर्श किया जाएगा और बहुमत होने पर ही संशोधन पारित होंगे।
यह पहला मौका नहीं है जब सीएनआइ थंपू के समर्थन में आगे आया है। इसी साल, जुलाई में जब एक शोधार्थी के कथित यौन उत्पीड़न के आरोपी प्रोफेसर का बचाव करने का आरोप लगने के बाद थंपू के इस्तीफ की मांग ने जोर पकड़ा था। उसी समय सीएनआइ ने एक बयान जारी कर कहा था कि उसे थंपू के नेतृत्व में पूरा भरोसा है। सीएनआइ के एक अन्य सदस्य ने नाम उजागर नहीं करने के अनुरोध के साथ कहा कि प्रस्तावित संशोधनों में कुछ भी गलत नहीं है, कम से कम हम ऐसा नहीं सोचते। अगर अधिकार ज्यादा केंद्रीकृत हैं, कामकाज भी सुव्यवस्थित रहेगा।
यह संभव है कि एक कालेज को अधिकारों के विभाजन के साथ संचालित किया जाए लेकिन अगर कालेजों की संख्या को बढ़ाना है तो ऐसा करने की जरूरत होगी। प्रबंध समिति की बैठक सोमवार को निर्धारित है। विश्वविद्यालय के सूत्रों की माने तो दिल्ली विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के साथ अब तक कोई विचार-विमर्श नहीं हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय कानून के मुताबिक विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (ईसी) के साथ विचार-विमर्श के बिना इस प्रकार का कोई कदम नियमों का उल्लंघन होगा। ऐसा करने पर कालेज की मान्यता भी समाप्त की जा सकती है। विश्वविद्यालय प्रशासन का तो यहां तक कहना है कि बगैर ईसी स्वीकृति के यदि यह प्रतिष्ठित कालेज कोई कदम उठाता है तो इसको यूजीसी से मिलने वाली राशि से वंचित होना पड़ सकता है। इस कालेज को यूजीसी से 95 फीसद कोष मिलता है। शेष राशि सीएनआइ नियंत्रित सेंट स्टीफन ट्रस्ट से आती है।
