अगले साल होने वाले दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव के करीब आने के साथ ही दिल्ली के अकाली धड़ों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है। कमेटी के चुनाव दिल्ली में होते हैं और इसमें सिख मतदाता हिस्सा लेते हैं। चुनाव में जो गुट जीतकर आता है, उसकी टीम के लोग सिखों के विभिन्न संस्थानों के प्रबंधन पर काबिज होते हैं। दिल्ली की मौजूदा कमेटी पर मंजीत सिंह जीके और मनजिंदर सिंह सिरसा का कब्जा है। उनसे पहले कमेटी पर परमजीत सिंह गुट का कब्जा था। दिल्ली में मौजूदा गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव में मुख्य रूप से इन्हीं गुटों में सीधा मुकाबला होता है। कई स्थानों पर निर्दलीय उम्मीदवार भी खड़े होते हैं। जैसे-जैसे गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव करीब आते हैं, राजधानी के सिखों में धड़ेबाजी शुरू हो जाती है और एक-दूसरे के खिलाफ सोशल मीडिया, फेसबुक और व्हाटसऐप के जरिए प्रचार शुरू हो जाता है। वैसे पिछले करीब सभी चुनावों में नवंबर 1984 के दंगों का मामला हावी रहा है। दोनों गुट एक-दूसरे पर कांग्रेस के हाथों की कठपुतली बनने तक का आरोप लगाते रहे हैं।
हाल ही में शिरोमणि अकाली दल के सरना गुट ने मंजीत सिंह गुट पर कई तरह के घपलेबाजी के आरोप लगा दिए। सरना ने आरोप लगाया कि कमेटी के 100 करोड़ रुपए की एफडीआर में घपलेबाजी हुई है। उन्होंने कहा कि कमेटी पर काबिज बादल गुट लगातार कहता रहा है कि 100 करोड़ रूपए की एफडीआर कमेटी के पास सुरक्षित है, लेकिन कमेटी के इन दावों की पोल उस समय खुल गई, जब दिल्ली हाई कोर्ट के सामने कमेटी के वकील ने यह बयान दिया कि उनके पास गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूल के कर्मचारियों को वेतन आयोग का बकाया अदा करने तक के लिए पैसा नहीं है और दिल्ली कमेटी ने बैंक से 40 करोड़ रुपए का कर्ज लेने के लिए अर्जी दे रखी है, ताकि कर्मचारियों के बकाए की अदायगी हो सके। सरना ने अपने विरोधी मंजीत सिंह गुट पर आरोप लगाया कि बादल गुट के नेताओं ने 26 लग्जरी कारों की खरीद, व्यक्तिगत विदेश यात्राओं और चार्टर्ड हवाई यात्राओं के जरिए एफडीआर का पैसा बहुत पहले ही लुटा दिया था। उन्होंने कहा कि अगर कमेटी के पास 100 करोड़ रुपए की एफडीआर सुरक्षित है, तो वह कर्मचारियों के पैसे की क्यों नहीं अदायगी कर रहे हैं।
वहीं शिरोमणि अकाली दल की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता परमिंदर पाल सिंह ने सरना पर पलटवार करते हुए सवाल किया कि गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूल के छात्रों से छठे वेतन आयोग के हिसाब से फीस लेने के बावजूद सरना ने स्कूल के कर्मचारियों को उनका हक देने के लिए 11 साल तक कोई पहल क्यों नहीं की? उन्होंने कहा कि बच्चों से ज्यादा फीस लेने के बावजूद सरना वकीलों को मोटी फीस देकर इन मामलों को 11 साल तक लटकाते रहे और आज जब कमेटी मई 2014 से छठे वेतन आयोग के हिसाब से वेतन देने के साथ ही बकाया 125 करोड़ रुपए के भुगतान कर रही है तो सरना को सियासी तौर पर यह सही नहीं लग रहा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा कमेटी ने स्टाफ के लिए जो काम किया है उसकी दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर सराहना होनी चाहिए थी, लेकिन मुद्दों की कमी के शिकार सरना दल ने स्टाफ को मिलने वाले हक पर सवाल उठाकर अपनी छोटी सोच जाहिर की है। उन्होंने कहा कि एफडीआर की राशि सुरक्षित है।