कलकत्ता हाई कोर्ट ने करोड़ों रुपए के सारदा चिटफंड घोटाले के आरोपी तृणमूल कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री मदन मित्रा की जमानत गुरुवार को रद्द कर दी और उन्हें आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। सीबीआइ ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि 31 अक्तूबर को निचली अदालत की ओर से मित्रा को दी गई जमानत रद्द की जाए। न्यायमूर्ति निशिता म्हात्रे और न्यायमूर्ति तापस मुखर्जी के खंडपीठ ने मित्रा से कहा कि वह अदालत के आदेश की प्रति मिलने के बाद तुरंत आत्मसमर्पण करें।
मित्रा के वकील एसके कपूर ने आत्मसमर्पण के लिए सात दिनों का वक्त मांगा, लेकिन अदालत ने इसे नामंजूर कर दिया। सुनवाई के दौरान मित्रा के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल की ओर से सबूतों से छेड़छाड़ के कोई प्रमाण नहीं हैं और वह ‘हिस्ट्री-शीटर’ भी नहीं हैं।
सारदा घोटाले में शामिल होने के आरोप में मित्रा को 12 दिसंबर 2014 को सीबीआइ ने गिरफ्तार किया था। बीते 31 अक्तूबर को अलीपुर की अदालत ने उन्हें जमानत दी थी। बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट ने मित्रा को निर्देश दिया था कि उनकी जमानत रद्द करने को लेकर सीबीआइ की ओर से दाखिल की गई अर्जी पर फैसला होने तक वह पुलिस की निगरानी में घर में कैद रहेंगे।
राज्य के परिवहन मंत्री रहे मित्रा ने मंगलवार को उस वक्त मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस्तीफा सौंप दिया था जब सीबीआइ ने उच्च न्यायालय से उनकी जमानत रद्द करने के बाबत दलीलें दी थीं। बाद में उनका इस्तीफा राज्यपाल केएन त्रिपाठी को भेज दिया गया था।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार को सीबीआइ की याचिका पर दिया यह आदेश