उत्तर प्रदेश के देवबंद शहर में स्थित प्रतिष्ठित इस्लामी मदरसा और विश्वविद्यालय दारुल उलूम देवबंद ने बड़ा फैसला लिया है। संस्थान ने नए शैक्षणिक सत्र की प्रवेश परीक्षाओं का हवाला देते हुए 17 अप्रैल तक अपने परिसर में महिलाओं और बच्चों के प्रवेश पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया है। यह दूसरी बार है जब विश्वविद्यालय ने सहारनपुर जिले में स्थित अपने विशाल परिसर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया है।

जानें क्यों लगा बैन

पिछले साल 17 मई को भी इसी तरह का प्रतिबंध लगाया गया था। रविवार को परिसर के प्रवेश द्वार पर प्रतिबंध के बारे में एक नोटिस लगाया गया, जिसमें कहा गया कि दुनियाभर से हजारों छात्र प्रवेश परीक्षाओं के लिए परिसर में पहुंचने लगे हैं और महिलाओं और बच्चों की उपस्थिति तालिब (छात्रों) को विचलित कर सकती है। दारुल उलूम के पूर्व छात्र निकाय के अध्यक्ष महदी हसन आइनी ने इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर बात करते हुए कहा कि 7 अप्रैल से 17 अप्रैल तक परिसर में महिलाओं और बच्चों का प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा क्योंकि प्रवेश परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। यहां परीक्षाओं में लगभग 20,000 से 25,000 छात्र शामिल होते हैं।

महदी हसन आइनी ने कहा, “अगर हम उनके परिवारों, जैसे माताओं या बहनों को अनुमति देते हैं, तो परिसर में भारी भीड़ होगी। बड़ी संख्या में पुरुषों और महिलाओं की उपस्थिति उन्हें परीक्षाओं से विचलित कर सकती है।” कार्यवाहक कुलपति मौलाना अब्दुल खालिक मद्रासी ने कहा, “प्रतिबंध सीमित अवधि के लिए लगाया गया है और प्रवेश परीक्षा समाप्त होने के बाद इसे हटा दिया जाएगा।”

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पिछले साल भी लगा था प्रतिबंध

पिछले साल भी इसी तरह का प्रतिबंध लगाते हुए प्रशासन ने चिंता जताई थी कि कैंपस में महिलाओं की मौजूदगी छात्रों का ध्यान पढ़ाई से हटा रही है। अचानक लिए गए इस फैसले के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे, जिसके बाद प्रबंध समिति को 21 अक्टूबर, 2024 को प्रतिबंध हटाना पड़ा। हालांकि इसने सख्त शर्तें लगाईं, जिसमें यह भी शामिल था कि महिलाओं को केवल दो घंटे के लिए प्रवेश की अनुमति होगी और उन्हें अपना पहचान पत्र कार्यालय में छोड़ना होगा, जो प्रवेश पास जारी करेगा। उन्हें बुर्का पहनना भी अनिवार्य किया गया था।

खालिक मद्रासी ने कहा, “पिछले साल हमें लंबे समय तक प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि महिलाओं ने मदरसा के भीतर सोशल मीडिया रील बनाना और अपलोड करना शुरू कर दिया था और उनमें से अधिकांश बिना घूंघट के थीं। यह चलन संस्थान के मूल्यों के लिए अच्छा नहीं पाया गया। हमने बाद में कुछ शर्तें लगाने के बाद प्रतिबंध हटा लिया।”