42 विधायकों के साथ अरुणाचल प्रदेश की पीपुल्‍स पार्टी में शामिल होने वाले मुख्‍यमंत्री प्रेमा खांडू ने कांग्रेस से सत्‍ता छीन ली है। रविवार को खांडू ने ऐसा करने की वजह सामने रखी। उन्‍होंने कहा कि ऐसी पार्टी में रहने का कोई मतलब नहीं रह गया था जिसके पास अपने ही मुख्‍यमंत्री के लिए समय नहीं था। खांडू ने द इंडियन एक्‍सप्रेस को बताया, ”कांग्रेस सरकार का मुख्‍यमंत्री बनने के दो दिन बाद, मैं पार्टी हाई कमान के बुलावे पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिलने दिल्‍ली भागा। लेकिन उन्‍होंने मुझे तीन दिन तक इंतजार करने को कहा, उसी शाम मुझे 15 मिनट में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अगली सुबह मिलने का वक्‍त मिल गया। हम ऐसी पार्टी में क्‍यों रहें जिसके पास अपने मुख्‍यमंत्री के लिए समय नहीं?” खांडू ने कहा, ”मुख्‍यमंत्री बनने के सिर्फ दिनों में ही कांग्रेस मुख्‍यालय में हमें जैसा रिस्‍पांस मिला, वह पूरी तरह हताश और अपमानित करने वाला था। और तो और, वे मेरी लिस्‍ट से नाम हटाकर अपने मंत्रियों की लिस्‍ट मुझपर थोपना चाहते थे। हां, ये सच है कि हम 13 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस में लौट आए थे। हम शांति से अदालत के फैसले का सम्‍मान करते हुए पार्टी में लौटे, लेकिन जब आपकी अपनी पार्टी आप पर भरोसा न करे, पार्टी हाई कमान के पास हमारे लिए वक्‍त नहीं था, क्‍या विकल्‍प बचता है?”

खांडू ने कहा कि कांग्रेस हाई कमान को नाबाम तुकी (अरुणाचल के पूर्व सीएम) पर पूरा भरोसा था, ”लेकिन जब हममें से 40 (विधायक) बाहर जाकर कलिखो पुल के नेतृत्‍व में पीपीए में शामिल हो गए, तुकी के पास बचे अधिकतम 14 भी भरोसा बहुत पहले खो चुके हैं। हम सभी 43 यहां पीपीए में हैं, यह इस बात को साबित करता है।” खांडू अब भाजपा के समर्थन से पीपीए की सरकार चला रहे हैं। उन्‍होंने माना कि कांग्रेस 2014 के विधानसभा चुनावों में बहुमत से जीती थी, मगर विकास न होने की वजह से लोग उससे ऊब गए। उन्‍होंने कहा, ”ज्‍यादातर विधायक हताश थे क्‍योंकि कोई योजना काम नहीं कर रही थी, नए कार्यक्रमों की बात तो छोड़ ही दीजिए। राज्‍य सरकार का कोई अस्तित्‍व ही नहीं था। इसी वजह से हमें क्रांति करनी पड़ी।”

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जब खांडू से पूछा गए कि उन्‍होंने भाजपा की बजाय पीपीए जैसी लगभग निर्जीव पार्टी में शामिल होने का फैसला क्‍यों किया, तो उन्‍होंने कहा, ”ग्राउंड रिपोर्ट यह थी कि आम आदमी एक क्षेत्रीय पार्टी चाहता था। इसके अलावा, पीपीए पहले से ही नेडा का हिस्‍सा है, जो कि हमें बीजेपी का बराबर का भागीदार बनाता है।