राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में अपना एक अदद कमरा व घर में शौचालय नहीं होने से तंग एक युवती ने पति को तलाक दे दिया। जिले के आटूण गांव की इस युवती ने पारिवारिक अदालत में अर्जी दायर कर ससुराल में शौचालय नहीं होने से हो रही दिक्कतों के आधार पर तलाक की मांग की थी। अदालत ने तलाक को मंजूरी देते हुए अपने फैसले में कहा कि महिलाओं को शौच के लिए रात होने का इंतजार करना पड़ता है, यह क्रूरता है।  न्यायाधीश राजेंद्र कुमार शर्मा ने तलाक की अर्जी को मंजूरी देते हुए फैसले में लिखा है कि क्या हमें कभी दर्द हुआ है कि हमारी मां, बहनों को खुले में शौच करना पड़ता है। गांवों में महिलाओं को शौच के लिए रात होने का इंतजार करना पड़ता है। जब तक अंधेरा नहीं होता, तब तक वे शौच के लिए बाहर नहीं जा सकतीं।

न्यायाधीश ने कहा कि इससे उनकी शारीरिक यातना होती है। क्या हम मां, बहनों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं कर सकते। 21वीं सदी में खुले में शौच की प्रथा समाज के लिए कलंक है। तंबाकू, शराब, मोबाइल और बेहिसाब खर्च करने वाले घरों में शौचालय नहीं होना विडंबना है। न्यायालय ने फैसले में कहा कि शौचालय के अभाव में एक पत्नी मानसिक पीड़ा बर्दाश्त कर रही है और पति कोई परवाह नहीं कर रहा है। यह पत्नी के लिए एक मानसिक क्रूरता और त्रासदीपूर्ण स्थिति हो सकती है। सदर थाना पुलिस के अनुसार पीड़िता ने पति के खिलाफ मानसिक क्रूरता का मामला दर्ज करवाया था। जांच के बाद यह मामला न्यायालय में पहुंचा। महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति का व्यवहार उसके प्रति क्रूर है। न तो उसके पास अलग कमरा है और न ही घर में शौचालय है। इस दंपति के कोई संतान नहीं थी और पति मजदूरी करता था। युवती के वकील राजेश शर्मा ने बताया कि उसकी शादी 2011 में हुई थी और 2015 में उसने तलाक के लिए अर्जी दायर की थी।

क्या हम मां, बहनों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं कर सकते। 21वीं सदी में खुले में शौच की प्रथा समाज के लिए कलंक है। तंबाकू, शराब, मोबाइल और बेहिसाब खर्च करने वाले घरों में शौचालय नहीं होना विडंबना है। शौचालय के अभाव में एक पत्नी मानसिक पीड़ा बर्दाश्त कर रही है और पति कोई परवाह नहीं कर रहा है।
– न्यायाधीश राजेंद्र शर्मा
मामला भीलवाड़ी जिले के आटणू
गांव का
पति पर
लगाया था क्रूरता का आरोप
2015 में
दायर की थी तलाक की अर्जी