राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार की कार्यशैली से नाखुश हो राज्य पिछडा वर्ग आयोग को फौरन भंग करने के आदेश दिये है। अदालत ने आयोग भंग करने के साथ ही इसके अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन रोकने के आदेश भी दिये है। अदालत ने आयोग को वैधानिक दर्जा देने के लिए कानून पास नहीं करने पर विभाग के सचिव को फटकार भी लगाई है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने बुधवार को राज्य सरकार को ओबीसी आयोग के मामले में तगडा झटका दिया है। इस मामले में समता आंदोलन समिति ने याचिका दायर की थी। अदालत ने इसी मामले में दो दिन पहले ही सामाजिक न्याय अधिकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक जैन को अपने एक महीने का वेतन दान करने का आदेश भी दिया था।
अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई दो जनवरी को रखने का आदेश दिया और जैन को भी उस दौरान मौजूद रहने का निर्देश दिया है। इस मामले में समता आंदोलन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर ओबीसी आयोग को वैधानिक दर्जा देने की याचिका दायर की थी। इस पर हाईकोर्ट ने पिछले साल दस अक्तूबर को आदेश दिया था कि सरकार चार महीने में आयोग को वैधानिक दर्जा देने के लिए कानून पारित करें। समता आंदोलन का कहना था कि असल पिछडों की ईमानदारी से पहचान के लिए आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाए। अदालत के आदेश के बावजूद सामाजिक न्याय अधिकारिता विभाग ने स्थायी आयोग का गठन नहीं किया और प्रशासनिक आदेश जारी कर आयोग बना दिया।
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अदालत के आदेश की अवमानना पर आरक्षण में सुधार की लडाई लड रहे समता आंदोलन ने इस मामले में फिर याचिका दायर कर दी। अवमानना के संबंध में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फिर आठ हफते का समय सरकार को दिया था। सुनवाई के दौरान सरकार अपनी दलीलें देती रही और आयोग का वैधानिक गठन नहीं किया गया। अदालत की नाराजगी के बाद सामाजिक न्याय अधिकारिता विभाग के सचिव अशोक जैन बुधवार को एक महीने के वेतन को दान करने की रशीद लेकर अदालत पहुंचे।
रशीद देखने के बाद अदालत ने आयोग को भंग करने का आदेश दिया। राज्य पिछडा वर्ग आयोग में अध्यक्ष समेत पांच सदस्य है। इनके वेतन भत्ते पर 7 से 8 लाख रूपए हर महीने खर्च होते है। अदालत ने इन सभी का वेतन भी रोकने का आदेश दिया है। आयोग ने लंबे समय से कोई रिपोर्ट भी नहीं दी है।

