राजस्थान के तमाम बड़े अस्पतालों की दुर्दशा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनमें मरीजों की जिंदगियां ठेकेदारों के हाथों में ही है। प्रदेश की स्वास्थ सेवाओं में तो आॅक्सीजन से लेकर दवा और अन्य सामग्री तक ठेकेदार सप्लाई करते हैं। इसके अलावा अब डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी से जूझने वाले इन अस्पतालों में इलाज करने वाले भी संविदा पर रखे जाने लगे हैं जो अपनी नौकरी की चिंता में ही लगे रहते है। इससे इन अस्पतालों में मरीजों का इलाज भगवान भरोसे ही चल रहा है। हालात ऐसे हैं कि सरकारी अस्पताल खुद इलाज को मोहताज हैं। प्रदेश के बड़े सरकारी अस्पतालों की जब पड़ताल की गई तो खामियां ही खामियां नजर आईं। राजधानी जयपुर के साथ ही अजमेर, जोधपुर, बीकानेर, क ोटा, उदयपुर, भीलवाडा, भरतपुर, सीकर आदि बड़े शहरों के अस्पतालों को खंगाला गया तो कहीं भी चाक चौबंद इंतजाम नहीं मिले।  जमीन पर इलाज जयपुर के एसएमएस और जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में मरीजों को तो वार्ड में पलंग तक नसीब नहीं होते हैं। ऐसे मरीजों का इलाज जमीन पर ही होता है। जयपुर, अजमेर, जोधपुर, बीकानेर, कोटा और उदयपुर के अस्पताल तो मेडिकल कॉलेजों से जुड़े हैं। इसके बावजूद विशेषज्ञ डॉक्टरों का टोटा ही है।

ठेकेदार के हाथ में जिंदगीराजधानी जयपुर के दो बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस और जेके लोन समेत सभी में गंभीर मरीजों की जिंदगी ठेकेदारों के भरोसे मिली। ऐसा ही हाल प्रदेश के सभी अस्पतालों में है। सरकार इन कामों के लिए जितना धन ठेकेदारों को देती है, उतने में तो खुद सुचारू व्यवस्था कर सकती है। इन ठेकेदारों का भुगतान अटक जाने पर मरीजों की सांसें भी अटकने के दौर में आ जाती है। जयपुर के ही अस्पतालों में 10 से ज्यादा प्लांट ठेकेदारों के हाथ में है। इन अस्पतालों के आइसीयू से लेकर वार्ड और आॅपरेशन थियेटर तक में आॅक्सीजन की सप्लाई ठेकेदारों के हाथ में है। एसएमएस अस्पताल में करीब डेढ सौ आइसीयू पलंगों के साथ ही करीब पांच सौ पलंगों पर आॅक्सीजन की सप्लाई हो रही है। इसी तरह की व्यवस्था राज्य के तमाम सरकारी अस्पतालों में होने से मरीजों की जिंदगी दूसरे के हाथ में होना चिंताजनक है। जयपुर के बच्चों के जेके लोन अस्पताल में पिछले साल ठेकेदारों की आपसी लड़ाई में किसी ने अस्पताल की आॅक्सीजन सप्लाई ठप करने की कोशिश की थी। इससे कई शिशुओं की जिंदगी पर संकट खडा होने की नौबत आ गई थी।
घपलेबाजी की शिकायतें आम सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए मुफ्त दवा की योजना होने के बावजूद मरीजों को महंगी दवाइयां तो बाजार से ही लेनी पड़ती है। दवाओं की खरीद में भी खासी घपलेबाजी की शिकायतें आम हंै। ऐसा ही एक मामला बीकानेर संभाग के पीबीएम अस्पताल में उजागर हुआ है। इसमें करीब 60 लाख रुपए की दवाइयों के खुर्द बुर्द करने का खुलासा हुआ है।

पीपीपी मॉडल की तैयारी

प्रदेश की स्वास्थ सेवाओं को अब सरकार पीपीपी माडल पर भी देने की तैयारी में है। सरकार ने 35 प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों को प्रयोग के तौर पर प्राइवेट सेक्टर में दे दिया है। जानकारों का कहना है कि जल्द ही प्राथमिक के साथ ही सामुदायिक स्वास्थ चिकित्सालयों को पीपीपी मॉडल पर चलाने की तैयारी सरकार कर रही है। चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ के मुताबिक सरकारी चिकित्सा केंद्र अभी प्रयोग के तौर पर ही निजी क्षेत्र में दिए गए हैं। डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी होने से परेशानी है। भर्ती की प्रक्रिया चल रही है।\एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक डीएस मीणा ने कहा कि हालात को बेहतर बनाने की लगातार कोशिश की जा रही है। सरकार की तरफ से मिलने वाले संसाधनों को देखते हुए मरीजों का पूरा ध्यान रखा जाता है। गोरखपुर हादसे के बाद तो ठेकेदार व्यवस्था में और सजग होने की जरूरत है।

सरकारी अस्पतालों की हालात बेहद खराब है। मरीजों से ज्यादा तो ये अस्पताल बीमार हैं। उनका कहना है कि डॉक्टरों की कमी को पूरा करने की तरफ सरकार कोई ध्यान नहीं देती है। इसके साथ ही जीवनरक्षक उपकरणों की कमी से भी प्रदेश के ज्यादातर अस्पताल जूझ रहे है।
रिछपाल पारीक
रेडक्रास सोसायटी कोटा और सामाजिक कार्यकर्ता