लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद बीजेपी की राजस्थान इकाई में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। अंदरूनी कलह का  ताजा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का एक बयान है। 

रविवार को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘वफादारी का वह दौर अलग था जब राजनीति में आगे बढ़ाने वाले का सम्मान किया जाता था और हमेशा उसका साथ दिया जाता था। लेकिन आज ऐसा नहीं होता। आज लोग उसी की उंगली काटने की कोशिश करते हैं जिसे पकड़कर वे चलना सीखते हैं।’ उनकी इस टिप्पणी पर अब काफी चर्चा शुरू हो चुकी है और अलग-अलग तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। 

वसुंधरा राजे के इस बयान का क्या है मतलब? 

राजनीतिक जानकार वसुंधरा राजे के बयान को भाजपा आलाकमान और राज्य के पार्टी नेताओं की आलोचना के तौर पर देख रहे हैं। वसुंधरा राजे लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी का एक बड़ा चेहरा होने के बावजूद प्रचार के लिए मैदान में नहीं दिखाई दी थीं। इससे पहले प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद उनका नाम मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे आगे था लेकिन उनकी जगह भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। यह भी उनकी नाराजगी का कारण हो सकता है। 

पार्टी आलाकमान पर निशाना या प्रदेश नेताओं पर गुस्सा?

वसुंधरा राजे के बयान के बाद यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि उनका निशाना पार्टी आलाकमान भी था। कुछ का मानना है कि राजे की आलोचना राज्य सरकार के भीतर के लोगों पर थी, जिसमें डिप्टी सीएम  दीया कुमारी और मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर शामिल उनके निशाने पर थे।

गौरतलब है कि जयपुर के पूर्व राजघराने से ताल्लुक रखने वाली दीया कुमारी को कभी राजे का करीबी माना जाता था। हालांकि, राजे के पिछले कार्यकाल के दौरान उनके बीच दरार तब उभरी, जब राजे के राजघराने की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाए गए।

सूत्रों से पता चलता है कि अटकलें लगाई जा रही थीं कि भाजपा आलाकमान दीया कुमारी को वसुंधरा राजे के विकल्प के तौर पर तैयार कर रहा है, जिसकी जानकारी राजे को भी थी।

दीया कुमारी के डिप्टी सीएम बनने से अटकलों को बल मिला है। कुछ लोगों का तो यहां तक ​​कहना है कि अगर पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के राजनीतिक उत्तराधिकारी और वरिष्ठ भाजपा नेता नरपत सिंह राजवी ने विधानसभा चुनाव से पहले जयपुर राजघराने के बारे में विवादित टिप्पणी नहीं की होती, तो दीया कुमारी को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता था। खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के बारे में भी ऐसी ही अफवाहें हैं। हालांकि, विधानसभा चुनाव के बाद राजे कमजोर दिखाई थी लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन ने उनके गुट को और मजबूत कर दिया है।