राजस्थान में पीने के पानी की समस्या के साथ ही दूषित पेयजल लोगों को अपंग बना रहा है। प्रदेश में साफ पेयजल की योजनाओं के लिए पिछले कई वर्षो में करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी हर पांचवां आदमी जहरीला पानी पीने को मजबूर है। दूषित पानी पीने के मामले में राजस्थान देश में अव्वल प्रदेशों की श्रेणी में है। प्रदेश के कई इलाकों में फ्लोराइड युक्त पानी पीने से लोगों के कुबड़े होने और खतरनाक बीमारियों की चपेट में आने से भय का माहौल है। सरकार की पेयजल योजनाओं में उच्च स्तर पर आए दिन भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते ही रहते हैं पर उन पर सिर्फ निचले स्तर पर ही कार्रवाई होने से इस पर लगाम नहीं लग पा रही है।
राज्य में स्वच्छ पीने के पानी के मामले में संसद की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार तो देश में सर्वाधिक दूषित पेयजल वाला राज्य राजस्थान है। इसके बाद दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है। प्रदेश की कुल बसावट एक लाख 21 हजार 648 बताई गई है। इसमें से अभी करीब 19 हजार 893 बसावट में रहने वाले लोग दूषित पानी पी रहे हैं। यह राजस्थान की कुल बसावट का करीब 20 फीसद हिस्सा है। इसमें प्रदेश की करीब 22 फीसद आबादी रहती है और उसे जहरीला पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है। प्रदेश में फ्लोराइड युक्त प्रभावित 6159, नाइट्रेट प्रभावित 1074, लवण प्रभावित 12656 और लोहा प्रभावित 5 बसावट हैं। इस आबादी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार ने गत चार वर्षों में 3166 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम आबंटित की थी। राज्य के पेयजल विभाग का कहना है कि इसमें से अब तक करीब तीन हजार करोड़ रुपए खर्च भी हो चुके हंै। इसके बावजूद प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में साफ पीने का पानी नहीं पहुंच पाया है।
प्रदेश में पीने का पानी लोगों को मुहैया कराने के लिए जिम्मेदार जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग बना हुआ है। बजट के मामले में यह महकमा बड़े विभागों में गिना जाता है। पेयजल की योजनाओं को लागू कर लोगों को राहत देने में यह महकमा नाकारा ही साबित हुआ है। विभाग को मिलने वाला ज्यादातर बजट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। विभाग के आधा दर्जन आला इंजीनियर पिछले दिनों ही भ्रष्टाचार के आरोप में पकडे गए थे जो अभी तक जेल में है। इन इंजीनियरों के पास ही बड़ी योजनाएं लागू करने की जिम्मेदारी थी जो वे पूरी नहीं कर अपनी जेबें भरने में लगे हुए थे। इस कारण प्रदेश की बड़ी आबादी दूषित पानी पीने को मजबूर है। प्रदेश के प्रभावित क्षेत्रों के जनप्रतिनिधि तो हमेशा विधानसभा में अपने इलाकों में साफ पेयजल की मांग उठाते रहते हैं।
दूसरी तरफ लोगों को साफ पीने का पानी मिले इस मुहिम से जुटे सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष बाफना का कहना है कि फ्लोराइड की अधिकता से हड्डी और दांतों पर सीधा असर पड़ता है। ऐसे पानी के कारण टोंक, अजमेर, सवाई माधोपुर और जयपुर जिले के ग्रामीण इलाकों के लोग कुबड़े हो रहे हैं और जवानी में ही जल्द बुढ़ापे की तरफ बढ़ रहे हैं। नाईट्रेट से कैंसर होने की आशंका और लवण की मात्रा ज्यादा होने से किडनी खराब होने के मामले सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं। बाफना का कहना है कि केंद्र सरकार ने राज्य को ज्यादा से ज्यादा घरों में नलों के जरिये पीने का पानी पहुंचाने पर काम करने की सलाह दी है। इसके बावजूद सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है। प्रदेश में अभी सिर्फ साढ़े बारह फीसद घरों में ही नलों के जरिये साफ पानी पहुंच रहा है। प्रदेश की ज्यादातर आबादी अभी भी परंपरागत साधनों से ही पीने का पानी पी रही है जो कि स्वास्थ विभाग के अनुसार अब दूषित जल में बदल चुका है।
सरकार पूरी मुस्तैदी से लोगों को साफ पीने का पानी मुहैया कराने में लगी है। हालांकि नलों से लोगों के घरों में पानी पहुंचाने में देश में राजस्थान अभी पीछे है। इसके साथ ही विभाग में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
-सुरेंद्र गोयल
प्रदेश के जनस्वास्थ्य मंत्री
इस मामले में प्रदेश में हालात बदतर ही है। सरकार की नाकामी के कारण फ्लोराइड, नाइट्रेट, आर्सेनिक, लोहा-लवण की पानी में अधिकता होने से लोगों की सेहत पर सीधा असर पड़ रहा है।
-सुभाष बाफना
सामाजिक कार्यकर्ता