राजस्थान सियासी संकट के आठ महीने बाद गहलोत सरकार ने फोन टैप की बात कबूली है। एक केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेताओं के बीच फोन पर हुई बातचीत के आडियो लीक हुए थे। जिसके बाद राज्य में सियासी घमासान मच गया था और सरकार पर अवैध फोन टैप के आरोप लगाए गए थे।
अगस्त 2020 के विधानसभा सत्र के दौरान सरकार से पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में राजस्थान विधानसभा की वेबसाइट पर पोस्ट की गई पुष्टि में इस बात का दावा किया गया है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे भाजपा विधायक कालीचरण सराफ ने पूछा था “क्या यह सच है कि पिछले दिनों कुछ फोन टैपिंग के मामले सामने आए हैं? यदि हाँ, तो किस कानून के तहत और किसके आदेश पर ऐसा किया गया? इसकी पूरी जानकारी सदन के पटल पर रखें।”
कई महीनों के बाद अपने जवाब में गहलोत सरकार ने कहा “सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के हित में और अपराध की घटना को रोकने के लिए जो सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को जोखिम में डाल सकता है। इन सब को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया गया। टेलीफोन टैप भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) और भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) नियम, 2007 की धारा 419 (ए) साथ ही सूचना अधिनियम की धारा 69 के प्रावधानों के तहत एक सक्षम अधिकारी के आदेश पर किए जाते हैं।”
जवाब में कहा गया है कि “फोन टैप राजस्थान पुलिस द्वारा उपरोक्त प्रावधान के तहत किया गया है और सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही किया गया है।” सरकार ने इंटरसेप्ट किए गए टेलीफ़ोन नंबरों के बार में कोई जानकारी नहीं दी है। न ही यह बताया है कि कितने समय के लिए उन्हें निगरानी में रखा गया था।
जवाब में सिर्फ यह कहा गया है कि “मीटिंग के माध्यम से राजस्थान के मुख्य सचिव द्वारा इन मामलों की समीक्षा की जाती है और नवंबर 2020 तक सभी मामलों की समीक्षा की जा चुकी है।
