राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि राज्य सरकार विवाहेतर संबंध रखने वाले कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई नहीं कर सकती है। एकल जज बेंच ने दो पुलिसकर्मियों की तरफ से लगाई गई रिट याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया था। मार्च 2001 में एक इंस्पेक्टर और महिला कॉन्स्टेबल को उनके विवाहेतर संबंधों के चलते निलंबित कर दिया गया था। कोर्ट ने निलंबन के आदेश और विभागीय कार्रवाई पर याचिका के समाधान तक रोक लगा दी है।

इस मामले में जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा ने कहा कि सरकार की कार्रवाई गैरकानूनी थी। उन्होंने कहा, ‘पति-पत्नी के जीवित रहते किसी दूसरे महिला या पुरुष से संबंध बनाना व्याभिचार (एडल्ट्री) की श्रेणी में आता है। भारतीय समाज के हिसाब से यह अनैतिक हो सकता है लेकिन गैरकानूनी नहीं है। ऐसे मामले नियोक्ता के पास विभागीय कार्रवाई करने का कोई आधार नहीं है। ऐसे मामले में जो व्यक्ति प्रभावित है वह जरूर कार्रवाई की मांग कर सकता है, इनमें तलाक भी शामिल हो सकता है।’

 

सरकार का पक्ष रखने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता जीएस गिल ने कहा था, ‘सरकार के पास सेवा कानून के तहत अपने कर्मचारियों पर नियंत्रण का पूरा अधिकार है। किसी को भी अनैतिक संबंध बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती इसीलिए उक्त कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गई थी।’ कोर्ट ने अपने बयान में पुराणों की बात करते हुए भगवान गणेश और इंद्र देवता का भी जिक्र किया। समाज में बदलाव के साथ नैतिकता की अवधारणा भी बदली जानी चाहिए। इसी तरह कानून निर्माताओं को भी समाज में बदलाव के हिसाब से कानून बदलने चाहिए।