राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के दौरान बनाए गए नए जिलों में से कुछ के नाम वापस लिए जा सकते हैं। पिछली सरकार में 17 नए जिले बनाए गए थे। जिससे प्रदेश में जिलों की संख्या 50 हो गई थी। बीजेपी का कहना रहा है कि नए जिले आनन-फानन में बनाए गए थे और कई मापदंडों पर भी पूरे नहीं उतरते हैं। अब सरकार की एक कमेटी इन जिलों को लेकर समीक्षा कर रही है और जल्द ही किसी तरह का फैसला लिया जा सकता है।   

क्या खत्म हो जाएंगे जिले? 

मौजूदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार इस नए जिलों से जुड़े मामले पर पुनर्विचार कर रही है और नए जिलों की स्थिति जानने के लिए एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया गया है। 

राजस्थान में नए जिलों की मांग बहुत पुरानी रही है।  खासकर बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, जोधपुर और बीकानेर के रेगिस्तानी इलाकों में यह मांग काफी पहले से उठती रही है।  इनमें से कई इलाकों में आबादी कम है और ये बहुत बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं, जिससे लोगों के लिए ज़रूरत पड़ने पर अधिकारियों से बातचीत करना मुश्किल हो जाता है।

पिछले साल (2023) मार्च में गहलोत सरकार ने अनूपगढ़, बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन, दूदू, गंगापुर सिटी, केकड़ी, कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल, नीम का थाना, फलौदी, सलूंबर, सांचौर, जयपुर ग्रामीण, शाहपुरा और जोधपुर ग्रामीण के तौर पर नए जिलों की घोषणा की थी। 

इन जिलों को किया जा सकता है खत्म

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा यह बात कह चुके हैं कि ज़्यादातर जिले आनन-फानन में बनाए गए थे। अब सरकार  कोटपूतली-बहरोड, खैरथल तिजारा, दूदू, डीग, गंगापुर सिटी, शाहपुरा, फलोदी, सलूंबर, सांचैर, अनूपगढ़, केकड़ी, नीमकाथाना जैसे जिलों को खत्म कर सकती है। भाजपा सरकार ने यह भी तर्क दिया कि पिछली सरकार द्वारा बनाए गए कई नए जिले बिना मांग के ही बना दिए गए। पार्टी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस ने कभी भी जिलों के निर्माण के लिए ठोस कारण नहीं बताए। बीजेपी ने आरोप लगाया कि कई ऐसे जिले बनाए गए जिन्हें सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए बनाया गया था। 

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भाजपा की ओर से यह दावा भी किया कि इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। सूत्रों के अनुसार पैनल ने अपनी रिपोर्ट पहले ही सीएम को सौंप दी है। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने यह भी कहा कि बेहतर प्रबंधन और प्रशासन के लिए सरकार जिलों की संख्या कम कर सकती है या छोटे जिलों को मिलाकर बड़े जिले बना सकती है। हालांकि, राज्य में होने वाले छह विधानसभा उपचुनावों और अगले साल होने वाले शहरी निकाय चुनावों को देखते हुए समिति की सिफारिशों पर अंतिम फैसला चुनावों के बाद ही लिया जा सकता है।