राजस्थान के कोटा शहर के एक हिस्से में रहने वाले एक लाख से ज्यादा लोग पिछले 27 सालों से धारा 144 के आदेशों के साए में रह रहे हैं। इसकी वजह से उस इलाके में रहने वाले लोग शादी और अंतिम संस्कार के अलावा कोई भी सार्वजनिक प्रोग्राम आयोजत नहीं कर सकते। कोटा के बजाज खाना, घंटा घर, मकबरा पाटन और तिप्टा इलाके में धारा 144 लगी हुई। करीब दो किलोमीटर क्षेत्र में फैले इन इलाकों में ज्यादात्तर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। इन इलाकों में 1989 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद धारा 144 लगा दी गई थी।

स्थानीय लोगों का दावा है कि धारा 144 के तहत इस इलाके में अभी भी पाबंदियां लगी हुई हैं, जबकि इस क्षेत्र में किसी तरह की कोई कानून एवं व्यवस्था से संबंधित समस्या नहीं है। यह उनके लिए एक ‘कलंक’ की तरह है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि बैंक उन्हें लोन देने से मना कर दते हैं और अधिकारी उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर देते हैं। सितंबर 1989 में कोटा में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिसके बाद इलाके में कर्फ्यू लगाया गया था। कर्फ्यू को इलाके से हट गया, लेकिन उसके बाद धारा 144 लगा दी गई। तत्कालीन कोटा जिलाधिकारी एसएन थानवी ने सितंबर 1990 में अगले आदेश तक धारा 144 लागू रहने का एक सर्कूलर जारी किया था। लेकिन अगला आदेश अभी तक नहीं आया।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन के राज्य सचिव आरके स्वामी ने बताया कि इलाके में स्थानीय लोग पिछले 27 सालों से कोई सांस्कृतिक, सामाजिक या धार्मिक प्रोग्राम नहीं कर सकते। इस इलाके में रहने वाले लोग इस आदेश के खिलाफ मार्च 2009 में कोरट् भी पहुंच थे।

Read Also: भाजपा सांसद ने कहा- लद्दाख को कश्‍मीर से अलग किया जाए, धारा 370 भी हटे

एक स्थानीय ने बताया कि राज्य सरकार ने कोर्ट में सकारात्मक जवाब दिया, लेकिन इलाके से पाबंदियां नहीं हटाई गईं, जहां पर रहने वाले ज्यादात्तर लोग अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इन इलाकों में पिछले कुछ सालों से कोई भी बड़ा अपराध या गैरकानूनी गतिविधि नहीं हुई है। जब इस मुद्दे के बारे में जिलाधिकारी रवि कुमार से पूछा गया तो उन्होंने सीधा जवाब देने से बचते हुए कहा कि यह धारा इसलिए लगी हुई है, ताकि इस इलाके में शांति भंग ना हो।