राजस्थान में कांग्रेस के लिए सचिन पायलट की वजह से स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। जब से उनकी तरफ से फिर बगावती तेवर दिखाए गए हैं, चुनावी मौसम में पार्टी को अपने लिए बड़ा खतरा नजर आ रहा है। उसी खतरे को कम करने लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पर एक अहम बैठक हुई। इस बैठक में सीएम अशोक गहलोत, सचिन पायलट और राहुल गांधी मौजूद रहे।

क्या गहलोत-पायलट में सुलह हो गई?

दिल्ली में हुई इस बैठक के बाद केसी वेणुगोपाल दोनों अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ बाहर आए। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों सचिन पायलट और अशोक गहलोत साथ मिलकर ही काम करने वाले हैं। दोनों नेता साथ मिलकर इस चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत दिलवाएंगे। एक बड़ी बात ये भी बताई गई कि दोनों नेताओं ने अपने विवाद को लेकर फैसला कांग्रेस हाईकमान पर छोड़ दिया है। यानी कि मल्लिकार्जुन खड़गे और गांधी परिवार ही दोनों की सियासी लड़ाई पर कोई निर्णय लेता दिखेगा।

चार घंटे मंथन, राहुल की क्या भूमिका?

वैसे खबर है कि खड़गे के घर पर देर रात अभी फिर गहलोत और पायलट की मीटिंग हो सकती है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी को क्योंकि जाना है, ऐसे में पहले ही मीडिया के सामने एक बयान जारी कर दिया गया। किसी विस्तृत फॉर्मूले पर निर्णय मीटिंग के बाद ही लिया जाएगा। वैसे पहली मीटिंग में चार घंटे के करीब चली जिसमें पूरी कोशिश की गई कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह करवा दी जाए।

पायलट की मांगों का क्या होगा?

अभी के लिए मीडिया के सामने तो जरूर कहा गया है कि दोनों नेता साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेंगे, लेकिन स्थिति को लेकर असमंजस बरकरार है। असल में सचिन पायलट की कुछ मांगे हैं, उसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई एक बड़ा पहलू है। मीडिया से बात करते वक्त उस विवाद पर कोई भी बयान नहीं दिया गया है। लेकिन कुछ दिन पहले पायलट ने जरूर कहा था कि आखिर कैसे पेपर लीक हो जाते हैं। कई बच्चे गांव से शहर आते हैं, महंगी कोचिंग लेते हैं, मां-बाप फीस जमा करते हैं और ऐन वक्त पर ये पेपर लीक हो जाते हैं। ये पूरा तंत्र ही बदलना पड़ेगा, अगर बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं होगा तो देश का कैसे हो जाएगा। राजस्थान की जनता सही गलत सब समझती है।

कर्नाटक फॉर्मूले पर काम कर रही कांग्रेस?

उस तल्खी के बीच अब किस तरह के समझौते पर काम किया जा रहा है, इसे लेकर पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। इस समय कांग्रेस का सारा जोर सिर्फ चुनाव जीतने पर है। पार्टी समझ चुकी है कि एकजुट होकर ही बीजेपी को किसी भी राज्य में मात दी जा सकती है। असल में अभी जिस तरह से कर्नाटक चुनाव में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की सियासी लड़ाई को नियंत्रण में किया गया, उसी तर्ज पर अब मल्लिकार्जुन खड़गे राजस्थान में भी मामले को शांत करना चाहते हैं।