बाडमेर भारत का पांचवां सबसे बड़ा जिला- यही परिचय है इस शहर के बारे में। किलों-मंदिरों और अपनी हस्तकलाओं के लिए प्रसिद्ध ये शहर अब एक अलग ही वजह से जाना जाने लगा है। ऐसा शहर जहां एक तरफ लोग इसकी सुदरता में खो जाते हैं वहीं दूसरी तरह अब यहां स्थानीय मौत को गले लगा रहे हैं।

नेटवर्क 18 की रिपोर्ट के मुताबिक ये शहर अब सुसाइड सिटी बनते जा रहा है। यहां पिछले 5 साल में कम से कम 27 सामूहिक आत्महत्या की घटनाएं हो चुकी हैं। इस सामूहिक आत्महत्या की घटनाओं में अब तक दर्जनों लोग काल के गाल में समा चुके हैं। दिल को दहला देने वाली इन घटनाओं का सबसे बड़ा कारण परिवारिक कलह सामने आ रही है। सामूहिक आत्महत्या की इन घटनाओं से जिला प्रशासन भी हैरान है।

कभी कई राजवंशों का केंद्र रहा ये शहर अब अपने ही बच्चों के लिए कब्रगाह बन रहा है। 27 सामूहिक आत्महत्याओं के मामले में 49 बच्चों को तो उसके अपने ही मां-बाप ने जान ले ली है। जिले में पानी के कुओं और टांकों में बच्चों के साथ कुदकर कई मां-बाप अपन ही बच्चों के कातिल बन चुके हैं। जिनके हिस्से में अब सिर्फ पछतावा ही बचा है। कई मामलों में बच्चों को लेकर कुएं में कूदने वाली मां को तो बचा लिया गया है लेकिन बच्चे नहीं बच पाए।

ऐसी घटनाएं महीने-दो-महीने में सामने आ ही जा रही है। जब घरेलू कलह से परेशान महिला बच्चों समेत कुएं या टांक में कूद जाती है। यहां पिछले 60 महीनों में किसी ना किसी का परिवार इसी सामूहिक आत्महत्या की घटनाओं में उजड़ा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में सुसाइड के 4 मामले सामने आए, जिसमें4 महिला और 8 बच्चों की जान गई है। 2017 में भी 4 बार इस तक का सुसाइड अटेम्पट के मामलों में 4 महिला और 6 मासूम काल के गाल में समा गए। 2018 में मामले तो 2 सामने आए लेकिन इसमें भी 2 मांओं के साथ-साथ 5 मासूमों ने दम तोड़ दिया। 2019 में सामूहिक आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई और 6 मामलों में 6 महिला, 2 पुरुष और 11 मासूम की मौत हो गई। साल 2020 में मामले और बढ़े और इस साल में 7 औरतें समेत 11 बच्चों की जान चली गई। वहीं साल 2021 में अभी तक 4 महिला, 1 आदमी और 8 मासूमों की जान इस सामूहिक आत्महत्या के कारण जा चुकी है।

जिला प्रशासन अब ऐसे मामलों को रोकने के लिए अब जागरूकता अभियान चला रहा है। प्रशासन अब टांक में सीढ़ियां भी लगवाने की तैयारी करने जा रहा है ताकि ऐसी घटना होने पर तुरंत बचाव हो सके।