जालंधर में मामा द्वारा 10 साल की भांजी का रेप कर उसे गर्भवती करने के मामले में आशा जताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द ही बच्ची को अपने 26 हफ्ते के बच्चे का गर्भपात कराने की इजाजत दे सकता है। सोमवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों द्वारा बच्ची की जांच कराने के आदेश दिए है जिससे कि यह पता लगाया जा सके कि बच्ची के अबोर्शन या लैबर पैन के दौरान उसकी जान को कोई खतरा तो नहीं होगा। 46 साल पुराने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के तहत किसी भी महिला को 20 हफ्ते के बाद बच्चे का गर्भपात कराने की इजाजत नहीं है। इसके बाद कोर्ट द्वारा कुछ छूट दे दी गई थी। गर्भपात कराने को लेकर केवल उन महिलाओं को छूट दी गई थी जिसमें बच्चे के जन्म के समय मां की जिंदगी को लेकर खतरा बनता है।

पीड़िता के वकील अलख आलोक द्वारा कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि लड़की के डॉक्टरों का कहना है कि अभी बच्ची की उम्र अभी बहुत कम है और उसकी पेल्विक हड्डियों का विकास ठीक तरह से नहीं हुआ है जिसके कारण प्रेगनेंसी में बच्ची की जिंदगी को खतरा है। इस याचिका में कहा गया है कि मेडिकल विशेषज्ञों के अनुसार अगर बच्ची नोर्मल डिलीवरी के दौरान बच्चे को जन्म देती है तो हो सकता है कि उसकी और उसके बच्चे की जान भी जा सकती है। इससे पहले चंडीगढ़ की जिला अदालत ने मंगलवार (18 जुलाई, 2017) को अपने एक फैसले में पीड़िता को गर्भपात की इजाजत देने से इंकार कर दिया था।

आपको बता दें कि बच्ची के पिता एक सरकारी कर्मचारी है जबकि उसकी मां घरेलू कामकाज करती हैं। बच्ची के साथ रेप का मामला उस समय सामने आया था जब उसने पेट दर्द की शिकायत अपने परिजनों से की थी। परिजन उसे अस्पताल लेकर गए तो उसके गर्भवती होने की बात सामने आई। वहीं 10 वर्षीय बच्चे के गर्भवती होने पर खुद डॉक्टर हक्के-बक्के रह गए हैं। बच्ची का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने कहा कि उन्होंने इससे पहले कभी ऐसा मामला नहीं देखा, जिसमें इतनी कम उम्र में कोई बच्ची गर्भवती हुई हो। डॉक्टरों के अनुसार इस उम्र में बच्चे के शरीर का ठीक से विकास भी नहीं हो पाता, शरीर की हड्डिया विकसित होने की प्रक्रिया से गुजरती है। रेप पीड़िता मामले में डॉक्टरों ने कहा कि अगर बच्ची पूरी 9 महीने तक गर्भवती रहती है तो ये उसके लिए बहुत खतरनाक हो सकता है।