नवजोत सिंह सिद्धू का राज्य सभा से इस्तीफा देना भले ही अन्य लोगों और पार्टियों के लिए हैरान करने वाला फैसला ना रहा हो लेकिन भाजपा के लिए यह चकित कर देने वाला कदम था। सिद्धू के इस्तीफा देने की खबर जब पंजाब भाजपा के एक नेता को मिली तो उनकी प्रतिक्रिया थी, ”वज्रपात हो गया।” हालांकि भाजपा नेता का यह बयान कुछ ज्यादा ही नाटकीय था लेकिन पंजाब भाजपा यूनिट का भी ऐसा ही हाल था। संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन सिद्धु के इस तरह के कदम से पंजाब भाजपा के पैरों तले से जमीन खिसक गई। पंजाब भाजपा अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता।
इसी बीच भाजपा की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल नेता और पंजाब के डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि सिद्धू दंपत्ति के जाने से गठबंधन पर असर नहीं पड़ेगा। साथ ही चुनाव नतीजों पर भी असर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सिद्धू दंपत्ति चाहे आम आदमी पार्टी में जाए या खास पार्टी में भाजपा-अकाली दल का गठबंधन बना रहेगा। इधर, सिद्धू के बारे में साफ दिख रहा था कि उनका मन नए रोल में नहीं लग रहा है। वे पंजाब की राजनीति में जाना चाहते थे। पंजाब से वे दो साल से दूर थे।
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साल 2014 में आम चुनावों में सिद्धु की लोकसभा सीट अमृतसर से अरूण जेटली को टिकट दिया गया। इसके बाद से सिद्धू पंजाब से दूर हो गए। उन्होंने जेटली के लिए प्रचार भी नहीं किया। जेटली जब एक लाख वोटों से चुनाव हार गए, उसके बाद ही वे अमृतसर गए। नवजोत सिद्धू और बादल परिवार के बीच की अनबन जगजाहिर है। सिद्धू का सांसद रहते हुए आरोप था कि अकाली सरकार उनके संसदीय क्षेत्र में विकास के कामों को रोक रह रही है। साथ ही उन्हें धीरे-धीरे साइडलाइन कर दिया गया। अकाली दल से गठबंधन के चलते भाजपा ने भी सिद्धू को नजरअंदाज किया। सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू भाजपा से विधायक थीं। उन्हें प्रकाश सिंह बादल सरकार में संसदीय सचिव बनाया गया था। लेकिन वे लगातार अकाली परिवार पर हमले बोल रही थीं।
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अकाली दल को संदेह था कि सिद्धू पंजाब में बड़ा कद पाना चाहते हैं। हरियाणा विधानसभा चुनावों में प्रचार के दौरान सिद्धू ने अकालियों और बादल परिवार के खिलाफ जमकर हमले बोले। मामला यहां तक बढ़ गया था कि अकाली दल ने भाजपा आलाकमान से इसकी शिकायत की थी।