आम आदमी पार्टी(आप) सुचा सिंह छोटेपुर को बाहर करने पर विचार कर रही है। उन पर आरोप है कि उन्होंने टिकट देने के बदले पैसे लिए। सुचा सिंह छोटेपुर आप से पहले कांग्रेस और अकाली दल में भी रह चुके हैं। उन्हें आजाद ख्यालों का व्यक्ति माना जाता है। उनके विरोधी पार्टियां बदलने को लेकर उनका मजाक बनाते हैं। हालांकि इसके बावजूद वे मानते हैं कि भ्रष्टाचार से उनका नाम जोड़ना मुश्किल है। इसीलिए छोटेपुर को एक वीडियो में पैसे लेते दिखाए जाने की बात उनके गले नहीं उतर रही है। वर्तमान में छोटेपुर आप के राष्ट्रीय संयोजक हैं और उन पर पार्टी से बाहर निकाले जाने की तलवार लटक रही है। उनका वीडियो आप के एक सदस्य ने बनाया है। उन्होंने पैसे लेने की बात स्वीकारी है लेकिन उनका कहना है कि यह पैसे पार्टी फंड के लिए थे।
अरविंद केजरीवाल ने दो साल पहले पंजाब में आप को जमाने के लिए छोटेपुर को चुना था। हालांकि उसके बाद से दोनों के बीच दरार आ चुकी है। सुचासिंह माझा क्षेत्र के छोटेपुर गांव के रहने वाले हैं। 1968 में गुरदासपुर के सरकारी कॉलेज से उन्होंने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की। उन्हें संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और गुरचरण सिंह तोहरा का करीबी माना जाता था। उनके ससुर मोहन सिंह तुर शिरोमणि अकाली दल के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। जाट महासभा के चंडीगढ़ अध्यक्ष राजिंदर सिंह बधेरी ने उनके बारे में बताया, ”तुर को छोटेपुर प्रभावशाली लगे और उन्होंने बेटी का ब्याह उनसे करा दिया।” छोटेपुर के दो बेटे हैं और इनमें से एक वकील व दूसरा पढ़ रहा है।
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स्वर्ण मंदिर से आतंकियों को बाहर निकालने के लिए चलाए गए ऑपरेशन ब्लैक थंडर के विरोध में छोटेपुर ने सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वे 1975 में सरपंच चुने गए और 1985 में अकाली दल से विधायक। इसके बाद उन्हें स्वास्थ्य और पर्यटन मंत्री बनाया गया। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने काफी तारीफ बटोरी। उनके साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इस्तीफा दिया था। अमरिंदर सिंह आज पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। दोनों के बीच आज भी रिश्ता कायम है। 2002 में सुचा सिंह छोटेपुर धारीवाल से निर्दलीय विधायक चुने गए। 2009 के लोकसभा चुनावों में अमरिंदर ने उन्हें कांग्रेस के साथ ले लिया था। इस दौरान दोनों ने प्रताप सिंह बाजवा के लिए प्रचार किया। छोटेपुर के प्रभाव के चलते बाजवा को जीत मिली।
2014 के आम चुनावों में छोटेपुर ने बाजवा के खिलाफ ही चुनाव लड़ा लेकिन बाजी भाजपा के विनोद खन्ना के हाथ लगी। यह लोकसभा चुनावों में छोटेपुर की दूसरी हार थी। इससे पहले वे निर्दलीय के रूप में हारे थे। 2012 में वे बाजवा की पत्नी के सामने विधानसभा चुनाव हार गए थे। छोटेपुर के भाषण देने की कला से केजरीवाल खासे प्रभावित हुए। आप के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि छोटेपुर ने ‘यस मैन’ बनने से इनकार कर दिया। इससे उनके और केजरीवाल के करीबी नेताओं के बीच दरार बन गई। उनके ग्रुप को साइडलाइन कर दिया गया है। पंजाब में पार्टी की कमान अब संजय सिंह के पास हैं जो यहां के इंचार्ज भी हैं। सूत्रों का कहना है कि लीगल सेल के मुखिया हिम्मत सिंह शेरगिल छोटेपुर की जगह ले सकते हैं।