कांग्रेस ने पंजाब मामलों का प्रभारी अपने वरिष्‍ठ नेता कमलनाथ को बनाया है। आलाकमान के इस फैसले से जहां विरोधियों को हमलावर होने का मौका मिल गया है, वहीं कांग्रेसी सकते में हैं। इसकी वजह यह है कि कमलनाथ का नाम 1984 के सिख दंगों में आ चुका है। यह ऐसा मुद्दा है जो आज भी पंजाब में चुनाव के दौरान अहम रो‍ल अदा करता है। राज्‍य में कुछ ही महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को बड़ा खिलाड़ी माना जा रहा है। ऐसे में कमलनाथ की नियुक्ति कांग्रेसियों के भी गले नहीं उतर रही।

नियुक्ति की खबर आने पर रविवार को एक वरिष्‍ठ कांग्रेसी ने इस पर प्रतिक्रिया में कहा- मैं इस सदमे से उबर नहीं पा रहा हूं। कम से कम उन्‍होंने राज्‍य के किसी नेता से विचार-विमर्श तो किया होता। कांग्रेसी इस आलाकमान की ‘भयंकर राजनीतिक भूल’ बता रहे हैं। हालांकि, पंजाब कांग्रेस अध्‍यक्ष कैप्‍टन अमरिंदर सिंह कमलनाथ को क्‍लीन चिट दे चुके हैं। उनका कहना है कि कमलनाथ का दंगों में कोई रोल नहीं था और 30 से भी कम लोगों ने उनके खिलाफ शिकायत की है, जो बहुत गंभीर बात नहीं है। उनका नाम तब उछला था, जब 2010 में वह अमेरिका जा रहे थे।

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शिरोमणि अकाली दल, और आप भी कमलनाथ की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं। आप नेता एच.एस. फुल्‍का ने कहा, ‘कमलनाथ वह पहले नेता हैं जिनका नाम अखबारों में आया था। 2 नवंबर, 1984 को इंडियन एक्‍सप्रेस ने छापा था कि कमलनाथ रकाबगंज साहिब में हमला बोलने वाली भीड़ का नेतृत्‍व कर रहे थे। 3 नवंबर, 1984 को स्‍टेट्समैन अखबार ने भी ऐसी ही खबर छापी थी।’

सिख दंगों की जांच के लिए बने नानावती आयोग ने भी कमलनाथ की भूमिका पर सवाल उठाए थे। उन्‍हें पंजाब और हरियाणा का प्रभारी बनाए जाने का कांग्रेस में खुला विरोध भी शुरू हो गया है। लुधियाना के नेता मनिंदर पाल सिंह गुलियानी पहले कांग्रेसी हैं जिन्‍होंने खुल कर कमलनाथ की नियुक्ति का विरोध किया। उन्‍होंने बयान जारी कर कहा कि कांग्रेस ने कमलनाथ को पंजाब का प्रभारी बना कर दंगापीडि़तों के जख्‍म पर नमक छिड़का है।