शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की ओर से पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया को हलका अमृतसर ईस्ट से उनके धुर विरोधी एवं पंजाब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ पंजाब विधानसभा चुनाव में उतार दिए जाने के बाद अब यह सीट बेहद चर्चित हो गई है। दरअसल, यह हलका हाल ही में अस्तित्व में आया है और सिद्धू की हमनाम पत्नी नवजोत कौर सिद्धू ही यहां से भाजपा की टिकट पर 2012 में विधानसभा चुनाव जीतीं थीं। हलके में हर धर्म और जाति का वोटर बसता है, जहां चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की ताकत किसी वर्ग विशेष के पास नहीं।
विधानसभा चुनाव 2012 में कौर को 33,406 वोट पड़े थे जबकि कांग्रेस की बागी निर्दलीय सिमरप्रीत कौर भाटिया को 26,307 वोट के साथ संतोष करना पड़ा था। इस पूरे माहौल में विपक्षी दलों के वोट विभाजन ने ही कौर की जीत की राह खोली थी। जो भी हो, चुनाव के बाद सिमरप्रीत कौर भाटिया और उनके परिवार को सिद्धू ने ही भाजपा में शामिल करा दिया था। बाद में भाटिया परिवार ने सिद्धू परिवार के ही साथ कांग्रेस का हाथ थाम लिया था और अब सिमरप्रीत कौर के ससुर अजीत सिंह भाटिया अमृतसर ईस्ट में वार्ड नंबर 30 से पार्षद हैं।
वर्ष 2017 में शिअद-भाजपा विरोधी लहर के कारण नवजोत सिंह को तब विधानसभा चुनाव में बेहद आसान जीत नसीब हो गई थी और वह 40 हजार से भी अधिक वोटों से विजयी रहे थे। शिअद यहां से इस बार मजीठिया की उम्मीदवारी में पहली मर्तबा चुनाव लड़ रहा है और यह सीट शिअद-भाजपा गठबंधन के समय भाजपा के ही पास रही थी। लेकिन सिद्धू परिवार की हर मौके पर मुखालफत करने के लिए ही बिक्रम सिंह मजीठिया और शिअद हलका अमृतसर ईस्ट में सक्रिय बने रहे। नवजोत कौर ने एक बार भाजपा के लिए तो नवजोत सिंह ने कांग्रेस के लिए एक बार यहां से चुनाव जीता।
शिअद का इस हलके से कोई पार्षद नहीं है और सभी 18 पार्षद कांग्रेस से आते हैं। ऐसे में शिअद को यहां मजीठिया के लिए जमीनी स्तर पर ही चुनाव प्रचार का कामकाज शुरू करना होगा। वैसे शिअद अपने चुनाव प्रबंधन के लिए विख्यात है। एक पार्टी नेता का कहना है, ‘हमारा सबसे पहला लक्ष्य तो नवजोत सिंह सिद्धू की हार तय करना ही है।’ और उनका कहना है कि हलके में मजीठिया के लिए चुनाव प्रचार का प्रबंधन करने के लिए सभी विकल्प खुले हैं।
यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि शहर से कम से कम ऐसे तीन कांग्रेस विधायकों के साथ तो सिद्धू के रिश्ते अच्छे नहीं हैं जिनके हलके अमृतसर ईस्ट से सटे हैं। और तो और, पंजाब कांग्रेस में ही सिद्धू के धुरविरोधियों के कारण कुछ हजार वोट तो उनके खिलाफ यानी मजीठिया के हक में जा सकते हैं। वैसे भी कांग्रेस में उनके विरोधी तो उन्हें ठिकाने लगाने को बेहद बेताब होंगे।
दूसरी ओर 10 साल से विधायक की कुर्सी पर काबिज सिद्धू परिवार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने में भी शिअद कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाला। उनके ही हलके में कम से कम 2 मर्तबा ‘लापता सिद्धू’ जैसे पोस्टर भी तो उनके ही विरोधियों की ओर से लगाए गए थे।
हालांकि, भाजपा ने यहां से अपना उम्मीदवार अब तक घोषित नहीं किया है और शिअद भी चाहेगा कि सिद्धू के खिलाफ भाजपा कोई कमजोर उम्मीदवार मैदान में उतार दे ताकि कांग्रेस विरोधी वोट का लाभ मजीठिया के हक में जाए।
वैसे यहां चुनाव में रुपए-पैसे की ताकत भी आजमाई जाएगी और इस मामले में सिद्धू ज्यादा ताकतवर नजर नहीं आते क्योंकि वे तो चुनाव अपनी लोकप्रियता के कारण जीतते आए हैं। यानी हलके में मजीठिया की उम्मीदवारी किसी भी नजरिये से सिद्धू के लिए आसान नहीं रहने वाली।
