ओडिशी नृत्य के जानेमाने गुरु केलूचरण महापात्र के 91वें वर्षगांठ पर आयोजित दो दिसवीय समारोह अंतरदृष्टि में महापात्र और रतीकांत महापात्र की नृत्य रचनाएं पेश की गईं। इंडिया हैबिटाट सेंटर में ओडिशी नृत्यांगना राजश्री प्रहराज ने एकल नृत्य प्रस्तुत किया। जबकि नमामि गंगे, अर्धनारीश्वर, समकाल जैसे नृत्य रचनाओं को कलाकारों ने सामूहिक रूप से पेश किया। सभी प्रस्तुतियों में देवीप्रसाद का प्रकाश संयोजन बहुत सुरुचिपूर्ण था। गुरु केलूचरण महापात्र ने जयदेव, तुलसीदास और उड़िया गीतों को ओडिशी नृत्य में पिरोकर बेहतर काम किया है। इससे न सिर्फ अन्य प्रदेशों के दर्शकों को नृत्य से जुड़ना आसान हुआ, बल्कि सृजन के नए आयाम को उन्होंने युवा पीढ़ी के लिए खोल दिया।
उनके नक्श-ए-कदम पर चलते हुए उनके शिष्य रतीकांत महापात्र ने अर्धनारीश्वर की परिकल्पना की। आदि शंकराचार्य की रचना ‘चांपेय गौरार्द्ध शरीर कायायै’ पर आधारित प्रस्तुति में तांडव और लास्य का सुंदर संयोजन था। इसकी संगीत रचना पंडित रघुनाथ पाणिग्रही ने की थी। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध था। शिव के सर्प, डमरू, त्रिशूल व बाघांबर का निरूपण हस्तकों, मुद्राओं और भंगिमाओं से बिल्कुल नए अंदाज में किया गया। प्रस्तुति में कलाकारों ने एक-एक सूक्ष्म बारीकियों को बहुत सफाई और स्पष्टता के साथ पेश किया। उनके पैर का काम भी सराहनीय था। उनकी अगली पेशकश समकाल थी। आदि ताल में निबद्ध प्रस्तुति में ओडिशी की तकनीकी बारीकियों का सुंदर समायोजन था।
समारोह की दूसरी संध्या में युवा ओडिशी नृत्यांगना राजश्री प्रहराज की प्रस्तुति खास रही। प्रहराज को हाल ही में संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।उन्होंने केलूचरण महापात्र की नृत्य रचना सीता हरण पेश किया। यह संत तुलसीदास रचित रामचरितमानस के पंचवटी प्रसंग पर आधारित था। इस पेशकश में नृत्यांगना ने अभिनय का सुंदर समावेश पेश किया। सीता के भावों को मुख और आंखों के भावों के जरिए विशेष रूप से चित्रित किया गया। आंगिक अभिनय में सरलता और सहजता दिखी। समारोह का समापन नृत्य रचना नमामि गंगे से हुआ। इसकी नृत्य परिकल्पना गुरु रतीकांत ने की थी। कलाकारों गंगा के अवतरण, उसके प्रवाह और उससे जुड़े जीवन व संस्कृति का समेकित चित्रण किया। कलाकारों ने लयात्मक हस्त, पद और अंगों की गतियों से एक अलग ही प्रभाव पैदा किया।
