पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वैसे तो जन-जन के प्यारे और देशभर में सर्वमान्य नेता थे, लेकिन लगातार दिल्ली में रहने के कारण यहां के लोगों से उनका जुड़ाव कुछ ज्यादा ही था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राजनीतिक शाखा जनसंघ (बाद में भाजपा) की स्थापना से ही वे इससे जुड़े रहे, लेकिन संगठन में किसी पद का कार्यभार उन्होंने बहुत बाद में लिया। जनसंघ की स्थापना के समय से वाजपेयी से जुड़े रहे दिल्ली के पूर्व मुख्य कार्यकारी पार्षद (मुख्यमंत्री के समकक्ष) व भाजपा नेता विजय कुमार मल्होत्रा बताते हैं कि अटल जी की लोकप्रियता शुरू से ही सबसे ज्यादा थी। रात दस बजे के बाद चुनावी सभा करने पर चुनाव आयोग की रोक के पहले उनकी सभा रात के एक बजे तक होती थी और किसी भी सभा में वे आधे घंटे से कम नहीं बोलते थे, लेकिन उनको सुनने के लिए लोग देर रात तक डटे रहते थे। उन्होंने बताया कि एक बार किसी सभा में वे कुछ शब्द बोल कर बैठ गए तो लोग शोर मचाने लगे और उन्हें दोबारा बोलना पड़ा।
जनसंघ की स्थापना दिल्ली के गोल मार्केट की रघुमल कन्या पाठशाला में 1951 में हुई। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके अध्यक्ष चुने गए और भाई महावीर व मौली चंद्र शर्मा को महासचिव बनाया गया। इसका पहला अधिवेशन 1953 में कानपुर में हुआ, जिसके बाद डॉ मुखर्जी एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान के खिलाफ कश्मीर में सत्याग्रह करने गए। वहीं उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ समय बाद संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। मल्होत्रा बताते हैं कि स्थापना बैठक में शामिल दिल्ली के नेताओं में केवल वाजपेयी ही बचे रह गए। उस बैठक में वाजपेयी को पद देने की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि वे पत्रकार ही बने रहना चाहते हैं।
वाजपेयी डॉ मुखर्जी के निजी सहायक बनकर कश्मीर में आंदोलन करने जाना चाहते थे, लेकिन डॉ मुखर्जी ने उन्हें देशभर में आंदोलन चलाने की जिम्मेदारी देकर वहां जाने से रोक दिया। तब तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ में सक्रिय हो चुके थे। पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी राजस्थान में संघ के प्रचारक थे उन्हें कश्मीर आंदोलन के समय जनसंघ में भेजा गया। कश्मीर आंदोलन में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी हुई। तब जनसंघ और कांग्रेस का दफ्तर जीबी रोड के मुहाने पर अजमेरी गेट में हुआ करता था। 1957 में दिल्ली में नगर निगम बनने के बाद पहले चुनाव में कांग्रेस की अरुणा आसफ अली (तब वे निर्दलीय थीं) मेयर और जनसंघ के केदार नाथ साहनी डिप्टी मेयर बने। 1967 में दिल्ली महानगर परिषद बनने के बाद पहले चुनाव में जनसंघ के जीतने पर विजय कुमार मल्होत्रा मुख्य कार्यकारी पार्षद और मनोनीत सदस्य लालकृष्ण आडवाणी महानगर परिषद के अध्यक्ष (विधानसभा अध्यक्ष के समकक्ष) बने।