प्रधानमंत्री की ओर से पसमांदा मुस्लिम समाज को बीजेपी से जोड़ने पर बल दिए जाने के बाद से इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि पार्टी की नजर अब इस समाज पर है। वहीं, आर्थिक रूप से पिछड़े इस समाज के लोग भी बीजेपी से जुड़ने को तैयार नजर आ रहे हैं। पसमांदा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने कहा कि अगर उनकी मांगें मान लें, तो उन्हें पीएम मोदी ले गुरेज नहीं है।

उन्होंने कहा, “संविधान की धारा 341 के तहत 1936 से 1950 तक दलित मुस्लिम को दलित हिंदुओं के बराबर आरक्षण मिलता था। 1950 में देश आजाद होने के बाद कांग्रेस की सरकार ने इस पर एक धार्मिक प्रतिबंध लगा दिया कि अब धर्म के आधार पर हम आरक्षण नहीं दे सकते, जबकि आरक्षण हमारे पिछड़ापन की वजह से मिलता है। ये हमारी मांग है।”

उनका कहना है कि हैदराबाद में बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने पसमांदा तबके के लोगों की सुध ली और उन्हें याद किया, तो ये कोई मामूली बात नहीं है। हमारी आवाज उन तक पहुंची है।

पसमांदा समाज के लोगों में पैठ बनाने की जरूरत पर बल देने की बात पर उन्होंने कहा, “2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 8-10 प्रतिशत वोट मुसलमानों का मिला। पीएम ने सर्वे किया होगा, जिसमें पता चला हो कि सरकार की जितनी भी योजनाएं थीं, उसके ज्यादातर लाभार्थी पसमांदा समाज के लोग थे और उन्होंने वोट दिया, इसलिए उनको लगता है कि हम इनकी परेशानियां सुनेंगे तो हमारे साथ जुट जाएंगे इसीलिए उन्होंने यह बात कही होगी। हमने भी उनकी इस बात का स्वागत किया कि अगर वो हमें अपने साथ जोड़ना चाहते हैं तो हमें कोई गुरेज नहीं है और हमारी मांगे मान लें तो।”

अनीस मंसूरी ने बताया कि पसमांदा समाज ने शुरुआत में बीएसपी और सपा पर भरोसा किया, लेकिन वहां किसी ने उनकी मांगें पूरी नहीं की, जिसके बाद वो अलग हो गए। उन्होंने कहा, “हमने शुरुआत में बहुजन समाजवादी पार्टी में बहनजी मायावती को सब बताया और उन्होंने कहा कि हम आपकी मांगें मानेंगे, लेकिन 2007 से 2012 तक अपनी सरकार में उन्होंने कुछ नहीं किया तो हम सपा में शामिल हो गए। यहां भी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने आश्वासन दिया कि जो मांगे बीएसपी ने नहीं मानी वो हम मानेंगे। 25 हजार पसमांदा तबके के लोग पार्टी कार्यालय में पहुंचे। मुलायम सिंह यादव ने हमारा मांग पत्र दिखाते हुए कहा कि इनमें से 2 मांगें 24 घंटे में सरकार बनने के बाद, आधी मांगें 6 महीने में पूरी होंगी, एक साल में हम सारी मांगें पूरी कर देंगे। पूरे 5 साल तक हम अखिलेश यादव की खुशामद करते रहे, लेकिन उन्होंने एक भी मांग पूरी नहीं की।”

उन्होंने कहा कि हम लड़ाई कर रहे हैं कि हमें राजनीतिक दल में भागीदारी चाहिए और सत्ता में भी, लेकिन ये लोग सरकारें बनाकर देते नहीं हैं। कोई भी राजनीतिक दल अगर मुस्लिम समाज का कोई चेहरा बनाता है तो वो हमेशा मुस्लिम में अपर कास्ट ढूंढता है। चाहे सपा में आजम खान, बसपा में नसीमुद्दीन सिद्दीकी या बीजेपी में मुख्तार अब्बास नकवी हों। उन लोगों ने सरकार में रहकर मलाई तो खाई, फायदा उठाया, लेकिन पसमांदा मुस्लिम समाज की सुध नहीं ली।

पसमांदा मुस्लिम समाज एक सामाजिक संगठन हैं, जो पूरे देश में काम करता है। अभी तक 8 राज्यों में यह संगठन काम कर रहा है। पश्चिम बंगाल के बाद सबसे ज्यादा पसमांदा तबके के लोग उत्तर प्रदेश में हैं। यूपी में कुल मुसलमानों की 85 प्रतिशत आबादी पसमांदा मुसलमानों की है। पूरे भारत में भी इतना ही है।