संसदीय पैनल ने दिल्ली पुलिस की आलोचना करते हुए कहा है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध पर नजर रखने में उसे अपनी जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए,बल्कि राजधानी में लोगों को सुरक्षा मुहैया कराने में चुस्ती दिखानी चाहिए। गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति से संबंधित विभाग ने भी गृह मंत्रालय की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें दिल्ली पुलिस की भूमिका को सीमित बताते हुए कई सामाजिक-आर्थिक और आपराधिक कारकों को महिलाओं के खिलाफ प्रचलित आपराधिक रवैए के लिए जिम्मेदार बताया गया है।
समिति का मानना है कि सरकार को फॉरेंसिक जांच सुविधाओं में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाना चाहिए। स्थायी समिति ने कहा कि वह गृह मंत्रालय के विचार से सहमत नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के अधिकतर 96 फीसद मामलों में आरोपी पीड़ित से परिचित होती हैं, जबकि महज चार फीसद ही अजनबी होते हैं। इसलिए इस तरह के अपराध को रोकने के लिए पुलिस के अलावा समाज और अन्य नागरिक एजंसियों पर भी समान रूप से जिम्मेदारी होनी चाहिए।
समिति ने अपनी 189वीं रिपोर्ट में कहा- इसलिए समिति दृढ़ता से यह सिफारिश करती है कि दिल्ली पुलिस को महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए अपनी जिम्मेदारी से भागने के बजाय इस तरह के अपराध से निपटने के लिए निश्चित रूप से प्रभावी और लचीली नीति अपनानी चाहिए। समिति ने सुझाव दिया है कि अगर जरूरत पड़े तो निकाय संस्थाओं और नागरिक समाज सहित अन्य एजंसियों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।
स्थायी समिति ने माना कि दिल्ली पुलिस की पीसीआर वाहन की सुविधा एक प्रभावी व्यवस्था है। लेकिन समस्या यह है कि कॉल सेंटर का संचालन कर रहे कर्मियों को पीड़ित की बताई जगह की पहचान या जगह को समझने या सड़कों और अन्य जगहों के नाम की पहचान में दिक्कत आती है। स्थायी समिति के सदस्यों ने 29 जून को दिल्ली पुलिस मुख्यालय का दौरा किया था और पुलिस आयुक्त व अन्य अधिकारियों से चर्चा की थी। समिति ने फॉरेंसिक जांच की सुविधा के मामले में बदहाल स्थिति को लेकर भी आक्रोश जताया। उसका दृढ़ता से मानना है कि स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए और फॉरेंसिक जांच की सुविधा की दिशा में आधुनिक रुख अख्तियार करना चाहिए।