बिहार में किसानों की हालत कितनी खराब हो चुकी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई किसानों को धान के इस सीजन में अपनी फसल तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कहीं कम में बेचनी पड़ रही है। इसकी एक मुख्य वजह फसल की खरीद में बिहार सरकार की ढिलाई है। दरअसल, राज्य में किसानों की फसल खरीदने की प्रक्रिया 15 नवंबर से शुरू होनी थी। पर इस काम के लिए सरकार द्वारा तय एजेंसी- प्राथमिक कृषि ऋण सोसाइटी (PACS) ने यह खरीदी करीब एक हफ्ते बाद शुरू की, वह भी 32 में सिर्फ 9 जिलों में।

चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार की तरफ से 30 लाख मीट्रिक टन धान की फसल खरीदने का टारगेट रखा गया है, पर सरकारी एजेंसी की ढिलाई से अब तक किसानों से सिर्फ 793 मीट्रिक टन धान ही खरीदा जा सका है। आधिकारिक अनुमान के मुताबिक, अब तक 80 फीसदी किसान अपने धान की फसल काट चुके हैं। औसतन बिहार में हर साल 1.60 लाख करोड़ मीट्रिक टन धान उगता है। इसमें सरकार करीब 30 लाख मीट्रिक टन खरीदती है। हालांकि, 2019-20 में सरकार ने 27 लाख किसानों से महज 20 लाख मीट्रिक टन धान ही खरीदा था।

कुछ किसानों ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बातचीत में बताया कि कई जगहों पर अब भी सरकार की ओर से खरीद प्रक्रिया शुरू की जानी है। ऐसे में उन्हें अपनी फसल खुले बाजार में 800 से 1200 रुपए प्रति क्विंटल तक के भाव पर बेचनी पड़ रही है, जबकि धान के लिए MSP 1868 रुपए प्रति क्विंटल तय की गई है। बांका स्थित पीपरा गांव के एक किसान आरआर रॉय ने कहा कि उनकी फसल तैयार है, पर उनके पास इसे सुरक्षित रखने की जगह और सरकारी खरीद प्रक्रिया का इंतजार करने का समय नहीं है। इसके चलते स्थानीय विक्रेता किसानों को एमएसपी से नीचे दाम देकर फायदा ले रहे हैं।

दिनारा के एक किसान ने PACS पर खरीदी प्रक्रिया में देरी का आरोप लगाते हुए कहा कि ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है, ताकि ज्यादातर किसान अपनी फसल सरकार की खरीद शुरू होने से पहले ही बेच दें। बिहार में धान खरीदी प्रक्रिया के इंचार्ज बनाए गए शंभू सेन का कहना है कि यह सच है कि इस बार धान खरीद देरी से शुरू हुई, पर हम इस प्रक्रिया को और तेज कर लेंगे।