जिस साल महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था, उसी साल बसंत पंचमी के दिन पुरानी दिल्ली के कटरा नील में एक स्कूल की शुरुआत हुई थी। आज जब देश महात्मा गांधी के जन्म के 150वें वर्ष को मना रहा है, उसी समय दरियागंज स्थित एंग्लो संस्कृत विक्टोरिया जुबली वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय भी अपने स्थापना के 150वें साल में प्रवेश कर गया है। 1857 की क्रांति के कुछ साल बाद शुरू हुआ यह आजादी से लेकर अब तक के इतिहास को समेट हुए है। केंद्र सरकार के दो मंत्री महेश शर्मा और हर्षवर्धन इसी स्कूल से पढ़ हुए हैं। इसके अलावा कांग्रेस नेता जेपी अग्रवाल और एके वालिया भी इस स्कूल के पूर्व छात्र रहे हैं।
विद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पीके सिंघल, जो इस स्कूल के पूर्व छात्र भी रहे हैं, के मुताबिक 1869 में पुरानी दिल्ली के कटरा नील में लाला चुनामल की दान की गई हवेली से 6 विद्यार्थियों और तीन शिक्षकों के साथ इस स्कूल ‘एंग्लो संस्कृत विद्यालय’ की शुरुआत हुई। स्कूल को शुरू करने में लाल चुनामल के अलावा लाला रोमी मल, लाल रामकिशन दास, लाला अंबा प्रसाद, लाला ईश्वरी प्रसाद, लाला शेओ प्रसाद, धर्म सुधाकर और लाला वजीर सिंह का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
1877 में स्कूल के विद्यार्थियों ने पहली बार मिडिल स्कूल परीक्षा में भाग लिया और सूरज नारायण पंजाब राज्य में प्रथम आए। सूरज नारायण बाद में उर्दू के मशहूर शायर हुए। 1844 स्कूल पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान की एक धर्मशाला में पहुंच गया। इस धर्मशाला को पंडित श्रीराम शर्मा ने बनवाया था। 1887 में स्कूल हाई स्कूल तक हुआ और क्योंकि यह साल रानी विक्टोरिया का जुबली साल था, इसलिए स्कूल का नाम ‘एंग्लो विक्टोरिया जुबली हाई स्कूल’ रख दिया गया। 1894 में स्कूल वरिष्ठ और प्राथमिक विभागों में बांट गया। पीके सिंघल के पिता भी स्कूल के प्रधानाचार्य रहे।
हेडमास्टर को मिली थी फांसी की सजा
सिंघल ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्कूल के हेडमास्टर लाला अमीर चंद और गणित के शिक्षक अवध बिहारी लाल ने 23 दिसंबर 1912 को चांदनी चौक स्थित टाउन हॉल के सामने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के ऊपर एक बम फेंका। हालांकि, इस हमले में वायसराय को कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन दोनों को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। करीब दो साल तक केस चलने के बाद दोनों को 8 मई 1915 को खूनी दरवाजा के पास स्थित सेंट्रल जेल में फांसी दी गई।
स्कूल का भवन धरोहर घोषित
सिंघल के मुताबिक स्कूल वर्तमान में दरियागंज में स्थित है। इसका निर्माण 1916 से 1920 के बीच हुआ और इस कार्य के लिए लाल अंबा प्रसाद ने उस समय 80 हजार रुपए दान दिए। इस भवन को 1994 में दिल्ली के उपराज्यपाल ने डीडीए अर्बन हेरीटेज अवॉर्ड दिया। 1928 में स्कूल के सामने वित्तीय समस्याएं आर्इं जिन्होंने स्कूल पूर्व छात्र लाल श्रीराम ने दूर किया और 1998 तक उनके श्रीराम एजुकेशन फाउंडेशन ने इसे चलाया। 1998 के बाद से अब तक स्कूल को धर्मपाल सत्यपाल चैरेटीबल ट्रस्ट चला रहा है।
वर्दी में जरूरी थी गांधी टोपी
स्कूल के पूर्व प्रधानाचार्य ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब सभी लोग गांधी जी का अनुसरण कर रहे थे तो स्कूल ने 1940 के आसपास वर्दी में गांधी टोपी को अनिवार्य कर दिया था। उस समय पंडित अमरनाथ उक्खल हेडमास्टर थे। स्कूल के छात्र तो गांधी टोपी पहनकर आते ही थे साथ ही स्कूल के शिक्षक भी गांधी टोपी पहनते थे। लोग स्कूल को ‘टोपीवाला’ स्कूल कहने लगे थे।
