उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विभाग ने हिन्दुस्तानियों को उनके गोत्र का सही-सही पता लगाने के लिए ह्यगोत्र पर्यटनह्ण तथा विदेशियों को उनके पुरखों से मिलाने के लिए नो यूअर रूट्स जैसी अनोखी योजनाएं शुरू करने जा रहा है। सनातन धर्म को मानने वाले देश-विदेश में रह रहे श्रद्धालु उत्तराखंड के पांच प्रमुख तीर्थस्थलों गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ और हरिद्वार में आकर पंडों और पुजारियों की पोथियों में अपने पुरखों के इन तीर्थों का भ्रमण और उनके गोत्र की जानकारी ले सकेंगे। इन पांच तीर्थों की धार्मिक व्यवस्थाओं की देख-रेख करने वाले पंडे-पुजारी तीथर्यात्रियों को उनके गोत्रों की जानकारी आसानी से दे सकें, इसके लिए उत्तराखंड सरकार का पर्यटन विभाग सभी प्रचलित गोत्रों के विशिष्ट चिन्ह बनाएगा। गोत्र से संबंधित ऋषियों के तपस्थल उनके आश्रमों के संबंध में वेद-पुराणों तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में वर्णित स्थानों का चिन्हिकरण करेगा और इसकी विस्तृत जानकारी के लिए पर्यटन विभाग तीथर्पुरोहितों की मदद से एक पोर्टल तैयार करेगा। इसके आधार पर हर कोई सनातनी अपने ईष्ट, ऋषि-मुनि और पुरखों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेगा।

सनातन धर्म के मुताबिक सप्तऋषियों विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप की सभी सनातनी संतानें हैं। ये ऋषि-मुनि सनातनियों के पूर्वज हैं। जिनके गौत्र के हिसाब से सनातनी समाज को सात गोत्रों में विभाजित किया गया है और इन सप्तऋषियों की तपोस्थली उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में है। इन सप्तऋषियों की तपस्थलियों को चिन्हित किया जाएगा। हरिद्वार में सप्तऋषि क्षेत्र हैं, जो ऋषिकेश-हरिद्वार के बीच सप्तसरोवर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि जब गंगा स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर आई और हरिद्वार नगरी के उत्तर दिशा की ओर पहुंची तो वहां सप्तऋषि अलग-अलग स्थानों पर तप कर रहे थे। गंगा जी यहां आकर भ्रमित हो गई कि वे ऋषि के सामने से होकर प्रवाहित हो। जिस ऋषि के सामने से वह प्रवाहित नहीं होंगी वह ऋषि नाराज हो जाएंगे। सप्तऋषियों को प्रसन्न करने के लिए गंगा जी यहां सात धाराओं में विभाजित हो गई और सभी ऋषियों के तपस्थानों से होकर प्रवाहित हुई। जिस पर सभी ऋषियों ने गंगा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। सप्त सरोवर नामक इस स्थान का उत्तराखंड पर्यटन विभाग विशेष रूप से सौंदर्यीकरण करेगा।

अंग्रेजों के जमाने में उत्तराखंड के नैनीताल, मसूरी, लैंसडौन, रानीखेत, पौड़ी और देहरादून में ब्रिटेन, फ्रांस, न्यूजीलैंड और अमेरिका के कई लोगों ने स्कूल-कॉलेज स्थापित किए थे और ये विदेशी मूल के लोग सैन्य छावनी क्षेत्र में रहते थे। इन्हीं इलाकों में इन्होंने चर्चों की स्थापना भी की थी। इन्हीं चर्चों के साथ इनके कब्रिस्तान भी बने हुए हैं, जहां 18वीं सदी में हजारों विदेशी दफन हैं। इनमें कई जाने-माने वकील, सैन्य अधिकारी और उनके परिजन शामिल हैं। बीते दिनों कई विदेशी अपने पूर्वजों की कब्रें तलाशने के लिए इन क्षेत्रों में भ्रमण के लिए आए थे, परंतु उन्हें इन कब्रिस्तानों में दफन लोगों के पुराने दस्तावेज नहीं मिल पाए और कब्रें नष्ट हो चुकी हैं। इससे अपने पूवर्जों की कब्रें तलाश करने वाले विदेशियों को निराशा हाथ लगी।

उत्तराखंड सरकार ने नो यूअर रूट्स नाम से एक योजना शुरू की है। रानीखेत में ब्रिटिश सेना ने 1869 में एक रेजीमेंट स्थापित की थी। इसके पास एक कब्रिस्तान भी बनाया गया। नैनीताल में ब्रिटिश काल में बनाए गए पांच कब्रिस्तान हैं। इनमें से केवल दो कब्रिस्तान ही बचे हैं। सबसे ज्यादा कब्रिस्तान लैंसडौन में 1887 के दौरान बने। मसूरी में ब्रिटिशकाल के दो कब्रिस्तान हैं। इनकी स्थापना 1829 में हुई। इनमें से एक कब्रिस्तान लंढौर तथा दूसरा कब्रिस्तान कैमल्स बैक रोड में है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि उत्तराखंड देवभूमि ऋषिमुनियों की तपस्थली रही है। यहां आने वाले तीथर्यात्रियों और पर्यटकों को अपने पूर्वजों और गोत्र के बारे में सटीक जानकारी मिल सके इसके लिए पर्यटन विभाग गोत्र पर्यटन की शुरुआत करने जा रहा है।

मसूरी की रहने वाली नलिनीत घिल्डियाल का कहना है कि मसूरी ब्रिटिश और अमेरिकी लोगों की बेहद पसंदीदा जगह रही। इसलिए मसूरी को इन विदेशी लोगों ने क्यून आॅफ हिल्स यानी पहाड़ों की रानी की संज्ञा दी। आजादी के बाद भी मसूरी जाने माने लेखक रस्किन बांड और फिल्म अभिनेता, निदेशक, कथाकार टॉम आल्टर की पसंदीदा जगह रही है। इन दोनों लेखकों ने मसूरी के परिवेश को दृष्टिगत रखते हुए कई कहानियां लिखीं। अमेरिकी मूल के जाने माने लेखक स्टीफन आॅल्टर के लिए तो उत्तराखंड एक घर की तरह है। उन्होंने उत्तराखंड समेत हिमालय पर कई पुस्तकें लिखी हैं।

उत्तराखंड के पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर का कहना है कि ब्रिटिश काल में बने कब्रिस्तानों का विवरण तैयार किया जा रहा है। उसकी एक सूची बनाकर देश विदेश में प्रकाशित की जाएगी और इंटरनेट पर इसका पूरा ब्योरा डाला जाएगा ताकि विभिन्न देशों में रह रहे लोग अपने वंशजों के बारे में जानकारी हासिल कर सकें।

हरकी पैड़ी की देखरेख करने वाली तीर्थ पुरोहितों की संस्था श्री गंगासभा हरिद्वार के अध्यक्ष पंडित पुरुषोत्तम शर्मा गांधीवादी का कहना है कि उत्तराखंड सरकार की गोत्र पर्यटन की योजना स्वागत योग्य है। वैसे पांच सौ से ज्यादा वर्षों से हरिद्वार के तीर्थपुरोहित यहां आने वाले तीर्थयात्रियों का ब्योरा अपनी बहियों में दर्ज करते आ रहे हैं। इन बहियों को न्यायालयों में भी कानूनी मान्यता मिली हुई है।