सर्दियों की छुट्टियों के बाद खुले पश्चिम बंगाल के 64 सरकारी स्कूलों में फिर अंग्रेजी लौट आई है। इन स्कूलों में पहले केवल बांग्ला माध्यम से ही पढ़ाई होती थी लेकिन अब विद्यार्थियों के सामने अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई का भी विकल्प होगा। राज्य के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षा के माध्यम पर 1980 के दशक से ही बहस होती रही है। तब वाम मोर्चा सरकार ने प्राथमिक कक्षाओं में सिर्फ बांग्ला माध्यम से ही पढ़ाई का फरमान जारी किया था। सरकार के उस विवादास्पद फैसले पर लगातार बहस और विवाद होते रहे हैं। शिक्षक और विशेषज्ञ अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षाओं और इंजीनियरिंग व मेडिकल की उच्च-शिक्षा के मामले में बंगाल के पिछड़ेपन के लिए उसी फैसले को जिम्मेदार ठहराते हैं। वाम मोर्चा सरकार को भी बाद में अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तब तक काफी देरी हो चुकी थी। उसने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में अंग्रेजी से दूरी बरतने की अपनी नीति में बदलाव शुरू किया था। उसके बाद सत्ता में आने वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार ने इस प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया। उसकी वजह से अब सरकारी स्कूलों में दशकों बाद एक बार अंग्रेजी लौट रही है।
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की मांग ज्यादा है और उच्च शिक्षा के लिहाज से यह बेहद अहम है। उसका कहना था कि अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में फीस ज्यादा होने की वजह से ज्यादातर छात्र वहां पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते। सरकारी स्कूलों में कम खर्च में उसी स्तर की पढ़ाई होगी। फिलहाल राज्य के जिन 65 सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया गया है, उनमें से 12 राजधानी कोलकाता में हैं। अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई के लिए सरकार कोई अतिरिक्त फीस नहीं लेगी। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन के लिए दसवीं तक बांग्ला माध्यम से पढ़ने वाले छात्र भी 11वीं में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में चले जाते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई का विकल्प देने का फैसला किया है।
1974 में गठित हिमांग्शु विमल मजुमदार आयोग ने प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी खत्म करने की सिफारिश की थी। उसके आधार पर तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने 1983 में पांचवीं कक्षा तक अंग्रेजी की पढ़ाई पर रोक लगा दी थी। 1992 में अशोक मित्र आयोग ने सुझाव दिया कि प्राथमिक स्तर पर एक विषय की पढ़ाई होनी चाहिए और अंग्रेजी पांचवीं कक्षा से पढ़ाई जानी चाहिए लेकिन उन सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। 1998 में पवित्र सरकार समिति ने दूसरी कक्षा से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू करने की सिफारिश की। राज्य सरकार ने 1999 में उस सिफारिश को लागू कर दिया। 2001 में गठित मुखर्जी आयोग ने पांचवीं कक्षा से अंग्रेजी की पढ़ाई की सिफारिश की थी लेकिन तत्कालीन बुद्धेव भट्टाचार्य सरकार ने उसकी सिफारिशों को खारिज करते हुए पहली कक्षा से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया।