राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें नोएडा से ग्रेटर नोएडा के बीच मेट्रो लाइन के निर्माण पर तब तक रोक लगाने की मांग की गई थी जब तक कि उसे ईआईए अधिसूचना के नियमों और अधिकरण के निर्देशों के तहत अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी हासिल नहीं हो जाती। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार के नेतृत्व वाले पीठ ने अधिकरण के 31 मई को आए आदेश में बदलाव की मांग करने वाली एक पर्यावरण कार्यकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में एक याचिका अलग से दायर की जा सकती है।
न्यायमूर्ति एमए नंबियार वाले इस पीठ ने कहा, ‘यह याचिका दीवानी प्रक्रिया संहित, 1908 के नियम एक के आदेश 47 यानी एनजीटी कानून की धारा 19 के दायरे और कार्यक्षेत्र में नहीं आती है’। पीठ ने आगे कहा, ‘याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता को सलाह दी जाती है कि वे स्वतंत्र याचिका दायर करें क्योंकि कानून की घोषणा अगर फैसले की तारीख के बाद होती है तो फैसले पर पुनर्विचार के लिए यह आधार नहीं बनता है। इसलिए याचिका रद्द की जाती है’।
विक्रांत तोंगड़ की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका में कहा गया था कि 31 मई, 2016 को आए फैसले पर ‘पुनर्विचार और बदलाव’ जरूरी है, वह भी परियोजना पर रोक लगाने की हद तक जब तक कि पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन (ईआइए) अधिसूचना, 2006 के तहत पर्यावरण संबंधी मंजूरी नहीं मिल जाती क्योंकि इसके तहत पर्यावरण संबंधी मंजूरी ‘पहले’ ही मिल जानी चाहिए। 31 मई को आए आदेश में पीठ ने कहा था कि नोएडा मेट्रो रेल निगम पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन (ईआइए) अधिसूचना, 2006 की अनुसूची 8 (बी) के तले आता है। यह अधिसूचना इमारतों, निर्माण और विकास परियोजना से संबंधित है जिनके लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी पहले से लिए जाने की जरूरत होती है।

