Sourav Roy Barman

विजय कुमार देव की नियुक्ति राष्ट्रीय राजधानी के मुख्य सचिव के रूप में हुई है। ऐसा लगातार तीसरी बार है जब इस नियुक्ति के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मशवरा नहीं किया गया, जबकि साल 2016 में जारी गृह मंत्रालय की एक कैडर नीति के तहत यह जरुरी है। इसमें लिखा गया है कि मुख्य सचिव/प्रशासक के ट्रांसफर व पोस्टिंग और राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में पॉलिसी फोर्स का नेतृत्व करने वाले सीनियर पुलिस अधिकारी से संबंधित निर्णय मुख्यमंत्री के मशवरे से गृहमंत्री की मंजूरी के साथ लिया जा सकते हैं। बता दें कि मई, 2015 में गृह मंत्रालय ने अरविंद केजरीवाल सरकार से सेवाओं से संबंधित नियंत्रण ले लिया था। इसके एक साल बाद 9 नवंबर, 2016 को यह पॉलिसी लागू की गई थी। पॉलिसी में आगे लिखा गया है कि मुख्यमंत्री से मिली प्रतिक्रिया पर विचार करने के बाद गृह मंत्रालय मुख्य सचिव, प्रशासक, पुलिस महानिदेशक की पोस्टिंग के लिए ऑर्डर दे सकता है। हालांकि इस मामले में 15 दिन तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने की एवज में गृह मंत्रालय खुद के विवेक से इस मुद्दे पर निर्णय ले सकता है। इसके अलावा अन्य अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर फैसले एजीएमयूटी कैडर की ज्वाइंट कैडर ऑथिरिटी द्वारा किया जाएगा।

मामले में जब गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि दिल्ली के मामले में ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स (टीबीआर) की प्राथमिकता रहती है और यह मुख्यमंत्री से परामर्श करने की आवश्यकता पर रोक लगाता है। टीबीआर की धारा 55 के खंड 2 के मुताबिक मुख्य सचिव के चयन और पोस्टिंग के लिए एलजी की मंजूरी की जरुरत होगी।

मगर दो मुख्य सचिव जो शीला दीक्षित सरकार में अपनी सेवाएं दे चुके हैं, ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हालांकि इस मामले में उप राज्यपाल की मंजूरी जरुरी थी, मगर मुख्यमंत्री का भी हमेशा मशवरा लिया गया। यहां तक केजरीवाल सरकार में नियुक्त किए गए पहले मुख्य सचिव केके शर्मा उन तीन अधिकारियों में एक थे जिनकी शिफारिश आम आदमी पार्टी ने भेजी थी। मुख्यमंत्री दफ्तर के एक सीनियर अधिकारी ने यह बात कही है। अधिकारी ने बताया ‘गृह मंत्रालय की अधिसूचना के बाद इसे खत्म कर दिया गया। हम एमएम कुट्टी, अंशु प्रकाश और विजय देव की नियु्क्त में शामिल नहीं है।’ (राहुल त्रिपाठी के इनपुट के साथ)