कलाश्री फाउंडेशन ने उस्ताद अमीर खां की याद में उनके नाम से एक वार्षिक संगीत समारोह करने का मन बनाया है। उसका पहला उस्ताद अमीर खा संगीत समारोह दो से चार जून तक मुक्तधारा सभागार में आयोजित किया गया। उस्ताद की शिष्य परम्परा में जिन शिष्यों ने उनकी धीर-गंभीर गायिकी को आगे बढ़ाने का स्तुत्य काम किया है, उनमें पं. तेजपाल सिंह का नाम पूरे आदर से लिया जाता है।

सिंह बंधु के नाम से ख्यात गायक जोड़ी में से अग्रज पं तेजपाल सिंह जितने अच्छे गायक हैं, उतने ही समर्थ गुरु भी। अपने गुरु उस्ताद अमीर खां पर लिखी उनकी प्रामाणिक पुस्तक को भी जानकारों ने सराहा है। उस्ताद अमीर खां की याद में आयोजित इस समारोह में उनकी अविस्मरणीय गायिकी का प्रतिनिधित्व पं. तेजपाल सिंह के तीन शिष्यों ने किया।

समारोह की उद्घाटन संध्या की शुरुआत हुई पं. नरेश मल्होत्रा के प्रभावशाली गायन से। पं. तेजपाल सिंह के वरिष्ठ शिष्य नरेश जी ने शाम के अत्यधिक मधुर राग यमन को अपनी मुख्य प्रस्तुति ले लिए चुना और अपने घराने की परंपरा अनुसार बड़ा ख्याल – कजरा कैसे डारूं….अति विलंबित झूमरा में शुरू किया। उन्होंने इस राग के गांभीर्य और माधुर्य दोनों को ही संवेदनशीलता से रेखांकित किया। इसके बाद सरगम और आकार की तानों के क्लिष्ट स्वरसंयोजन को पूरी तैयारी के साथ निभाते हुए अपनी तालीम और रियाज़ का भरपूर परिचय दिया।

नरेश जी ने इस राग का मशहूर छोटा ख़याल- ऐसो सुंदर सुघरवा बलमवा…… तीन ताल हुए। उसे भी सुंदर तानों से सजा कर पेश किया। इस दौरान बड़े ख़याल की अति विलंबित लय संभालते हुए और तीनताल के छोटे ख़याल में रंग भरते हुए तबले पर सुधीर पांडे का सधा हुआ ठेका और हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी की संगत दोनों ही उल्लेखनीय थे। मुख्य राग के बाद नरेश जी ने अमीर खान साहेब की रची सुंदर बंदिशें पेश कीं जिनमें राग हंसध्वनि का रुबाईदार तराना और राग जोग में रूपक ताल की बंदिश-ओ बलमा… गाने के बाद इसी राग में उनका सिरजा तराना तीन ताल भी गाया।

उद्घाटन संध्या के दूसरे कलाकार थे पं. देबू चौधरी के सुपुत्र और शिष्य प्रतीक चौधरी जिन्होंने सितार पर राग झिंझोटी और मारूबिहाग बजाया, उनके साथ तबले पर बेहतरीन संगति की पं. किशन महाराज के नाती और शागिर्द शुभ महाराज ने। पं. तेजपाल सिंह की शिष्या रमा सुन्दर रंगनाथन ने समारोह के दूसरे दिन और मनीष त्रिखा ने अंतिम दिन खान साहेब की गायिकी का प्रतिनिधित्व किया। दूसरे दिन अनुप्रिया देवताले की वायलिन और तीसरे दिन मंदार गाडगिल के गायन के बाद समारोह का समापन इकबाल अहमद के गायन से हुआ।