शास्त्रीय नृत्य के साथ नाट्यकला का समावेश रहता है। कलाकार पौराणिक कथाओं पर नृत्य अभिनय करते रहे हैं। नाट्य के अंतर्गत वाचिक, आंगिक, सात्विक और आहार्य अभिनय का प्रचलन रहा है। वाचिक अभिनय में शब्दों या स्वरों के जरिए भावों को अभिव्यक्त करते हैं। ‘स्त्री’ नामक प्रस्तुति में इसकी झलक वरिष्ठ नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने पेश किया।
सेंटर फॉर इंडियन क्लासिकल डांस की ओर से नृत्य समारोह का आयोजन किया गया। इंडिया हैबिटाट सेंटर में आयोजित समारोह के पहले दिन नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने नाट्य कथा शैली में नारी, स्त्री, कन्या और कुमारी के भेद को रेखांकित किया। द्रौपदी से लेकर आज तक की महिला को दमन और अत्याचार को सहन करना पड़ रहा है। वह अपनी प्रस्तुति के जरिए समाज और पुरुष वर्ग से निवेदन करती हैं -‘मुझे जानो और मुझे पहचानो’।
सोनल ने अपनी प्रस्तुति का आगाज ‘दुर्गा सप्तशती’ के श्लोकों पर आधारित नृत्याभिनय से किया। इसमें देवी के मातृ, क्षमा, शिवा, शक्ति, विद्या, धृति रूपों को हस्तकों, नेत्रों और मुख के भावों से विवेचित किया। उन्होंने अपने संवाद में कहा कि प्राचीन काल में महिला की-महि व इति के रूप में व्याख्या की गई थी। जबकि, नर धर्म अनुसरति यानि नारी। वह नारी जो अबला है। स्त्री शक्ति स्वरूपा है क्योंकि वह जननी है। वह दिव्य प्रकाश युक्त तेजसा यानि देवी है। सती स्त्री सीता, सावित्री, अनुसूया थीं।
जीवन की कठिन परिस्थितियों और परीक्षाओं से गुजर कर आत्मविश्वास से भरी चमकती-दमकती औरत कन्या है। कुंती, अहिल्या द्रौपदी आत्मविश्वासी स्त्रियां कन्याएं थीं। ये कन्याएं 18 दोषों से रहित होतीं थीं। इस श्रेणी में मीराबाई, ललेश्वरी, जाबाला, जना बाई और अन्य महिला संत थीं। इन प्रसंगों को दर्शाने के लिए उन्होंने मीरा बाई के पद ‘मानो चाकर राखो जी’ का प्रयोग किया। ऋषि सत्यकाम और माता जाबाला की कथा, वाल्मिकी रामायण से अहिल्या के ब्रम्हज्ञानी रूप, चंपू रामायण से तारा के प्रसंग का विवरण उन्होंने कथा वाचन शैली और अभिनय के जरिए पेश किया।
अगले अंश में अपनी नृत्य नाटिका द्रौपदी के कुछ अंशों को पेश किया। नायिका द्रौपदी के माध्यम से उन्होंने ‘जागो भारत’ का संदेश दिया। यह रचना ह्यअग्निकुंड जन्मी, वह ले अग्नि का तापह्ण पर आधारित थी। उन्होंने संवाद और अभिनय के जरिए भावों को पेश किया। नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने अष्टनायिका के भावों को ‘नायिका’ में दर्शाया। इस अंश में उन्होंने हस्तकों, मुद्राओं और मुखाभिनय से आठ नायिकाओं के भावों को निरूपित किया और साथ ही, पेंटिग्स के जरिए उनकी साम्यता को दिखाया। उन्होंने राधा-कृष्ण के संवाद को अष्टपदी ह्यदेहि पल्लवम् उदारम्ह्ण में चित्रित किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन कन्या से किया।
करीब 18-20 साल पहले उन्होंने नृत्य रचना ‘आज की कन्या’ पेश की थी। इसमें नारी के दुख, पीड़ा और अपने अधिकारों के प्रति जागृत होती महिलाओं का चित्रण उन्होंने पेश किया। यह रचना ‘मैं हूं आज की कन्या’ पर आधारित थी। रचना के अंश में ‘मैं आज की नारी हूं, मैं सलमा हूं’ में पुरूष प्रधान व्यवस्था पर जोरदार प्रहार करते हुए, नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने भावों को प्रभावकारी तरीके से व्यक्त करते हुए नृत्य किया। उन्होंने अपनी इस प्रस्तुति से अपने सामाजिक दायित्व का सरलता से निर्वाह किया। उन्होंने अपने नृत्य से औरतों को जागृति का संदेश दिया। उन्होंने समसामयिक विषय को उठाकर कलाकार के सामाजिक दायित्व को निभाया, जो एक बड़ी बात है।