सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय कानून के तहत बने नियमों के अंतर्गत उन आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति बुधवार को प्रदान कर दी जो असाध्य रूप से बीमार और बुरी तरह जख्मी हों। अदालत ने कहा कि पशुओं के प्रति करुणा और मानव जिंदगी के बीच संतुलन बनाना होगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह के पीठ ने कहा कि कुत्ते की जान मानव जिंदगी से अधिक कीमती नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि विशेष किस्म के आवारा पशुओं को खत्म करने की प्रक्रिया पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम कानून के तहत बने पशु जन्म नियंत्रण (श्वान) नियम 2001 के अनुरूप ही की जानी चाहिए।
पीठ ने कहा कि जीवन प्रकृति का अनमोल उपहार है और पशुआें के प्रति करुणा और मानव जीवन में तालमेल होना चाहिए। जजों ने कहा कि फिलहाल वे इस मसले पर महाराष्ट्र और केरल के नगर निगम कानूनों के संबंधित प्रावधानों पर गौर नहीं कर रहे हैं और प्राधिकारियों को कानून के तहत 2001 में बनाए गए नियमों के अनुरूप ही कार्रवाई करने का आदेश दिया जा रहा है।
पीठ से जब यह कहा गया कि कुछ हाई कोर्ट ऐसे मामलों में संबंधित नगर निगम कानूनों को ध्यान में लिए बगैर ही इसके विपरीत आदेश दे सकते हैं तो अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका आदेश सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए केंद्रीय नियमों का पालन अनुसरण करने संबंधी नियमों पर लागू होगा। अदालत ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों से कहा कि वे श्वान के काटने संबंधी मामले और नियमों के तहत आवारा कुत्तों को खत्म करने संबंधी आंकड़े उपलब्ध कराएं।
अदालत ने प्राधिकारियों से यह भी कहा कि आवारा कुत्तों के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों से उसे अवगत कराया जाए। नियमों के तहत चुनिन्दा किस्म के आवारा कुत्तों के लिए अलग से बाड़ा बनाने की जरूरत है। अदालत इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों को लेकर पशु कल्याण बोर्ड सहित कई संगठनों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
एनिमल वेलफेयर बोर्ड आफ इंडिया के खिलाफ पीपुल फार एलिमिनेशन आफ स्ट्रे ट्रबल्स व अन्य की तरफ से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में मूल याचिका दायर हुई थी। बाद में और भी कई याचिकाओं को उसके साथ जोड़ कर ही अदालत इस मामले की पिछले छह साल से सुनवाई कर रही है।
बुधवार को इस मामले में आखिरी फैसला सुनाया जाना तय था, लेकिन समय की कमी और कुछ कानूनी पहलुओं पर बहस पूरी न हो पाने के कारण अदालत ने फिलहाल अंतरिम आदेश ही दिया है। अब सुनवाई अगले साल नौ मार्च को होगी। पर तब तक सभी राज्यों के मुख्य सचिव यह संतुलन कायम रखेंगे कि आवारा कुत्तों के प्रति मानवीय और करूणा का व्यवहार तो सुनिश्चित हो ही, साथ ही उन्हें सभी जरूरी सुविधाएं भी मुहैया हों। पर मानव के लिए खतरा बन चुके आवारा कुत्तों से कड़ाई से निपटने की जरूरत को किसी पुराने स्थानीय कानून के बहाने टाला नहीं जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
- पशुओं के प्रति करुणा और मानव जिंदगी के बीच संतुलन बनाना होगा। कुत्ते की जान मानव जिंदगी से अधिक कीमती नहीं है।
- मानव के लिए खतरा बन चुके आवारा कुत्तों से कड़ाई से निपटने की जरूरत को किसी पुराने स्थानीय कानून के बहाने टाला नहीं जा सकता।