भाई-बहन के प्यार और जीवन भर रक्षा करने के वचन के रूप में मनाया जाने वाला त्योहार रक्षाबंधन को लेकर भले ही तमाम कहानियां लिखी गई हों, लेकिन मौजूदा परिवेश में यह त्योहार सिर्फ राखी बंधाने और उपहारों के लेन-देन तक ही तक सीमित होकर रह गया है। हालांकि कुछ लोगों के लिए यह त्योहार केवल भाई-बहन के प्यार का प्रतीक नहीं बल्कि जिंदगी देने वाला भी साबित हुआ है। रक्षाबंधन के मौके पर ऐसे ही दो मामलों की पड़ताल की गई, जहां एक भाई ने अपनी बहन को किडनी देकर उसकी जिंदगी बचाई। वहीं एक बहन ने अपने भाई को लिवर देकर उसे नया जीवन दिया। ये दोनों मिसालें ऐसी हैं, जिन्होंने इस रिश्ते की महत्ता और सार्थकता को राखी के बंधन से बहुत आगे पहुंचाया है।

बहन ने भाई को लिवर दिया
दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके में रहने वाले गुलशन चड्ढा (43) का लिवर पूरी तरह से खराब हो चुका था। लिवर नहीं मिलने की वजह से उनकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी, जिस वजह से लगातार खून का रिसाव होने लगा था। गुलशन की बहन कविता (35) से अपने भाई की हालत देखी नहीं गई और उन्होंने भाई को अपना लिवर देने का फैसला लिया। दोनों का ब्लड ग्रुप एक होने से डॉक्टरों को भी कोई खास दिक्कत पेश नहीं आई। 14 अक्टूबर 2016 को सेक्टर-128 के जेपी अस्पताल के डॉक्टरों ने लिवर का प्रत्यारोपण कर गुलशन चड्ढा को नई जिंदगी दी। गुलशन को करीब 21 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। वहीं, कविता को 10 दिन बाद ही छुट्टी दे दी गई। दोनों आज पूरी तरह से स्वस्थ हैं। गुलशन चड्ढा का चिराग दिल्ली में कारोबार है। उनकी पत्नी और एक बेटा व बेटी हैं। कविता उनकी सबसे छोटी बहन है। कविता का भी 14 साल का बेटा है।

भाई ने बहन को किडनी दी
उप्र के मुजफ्फरनगर के कनेड़ी गांव में रहने वाली बबली (40) को 17 सितंबर 2016 को नई जिंदगी मिली थी। करीब एक साल से बुखार, पैरों में सूजन व पेट में पानी भरने की शिकायत से परेशान बबली की किडनी खराब हो गई थी। डॉक्टरों ने किडनी बदलने को ही एकमात्र इलाज बताया था। बबली के परिवार में पति के अलावा एक बेटा और बेटी है। किडनी देने के सवाल पर बबली के चार भाइयों समेत दूसरे रिश्तेदारों ने चुप्पी साध ली। बबली की हालत बिगड़ने पर एक दिन उनके सबसे बड़े भाई अशोक (52) ने बहन को किडनी देने की पेशकश की। भाई-बहन होने की वजह से दोनों का ब्लड ग्रुप एक ही निकला। अशोक की एक किडनी बबली को लगा कर डॉक्टरों ने उनकी जिंदगी बचाई। दोनों करीब 10 दिन तक सेक्टर-128 के जेपी अस्पताल में भर्ती रहे। अशोक की दो बेटियां, एक बेटा और पत्नी भी उनके फैसले से सहमत थे। अशोक मुजफ्फरनगर के जसोई गांव में रहते हैं और यहीं खेतीबाड़ी करते हैं।