सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दो हजार सीसी और इससे अधिक की इंजन क्षमता वाली आलीशान डीजल कारों और एसयूवी के पंजीकरण पर लगी रोक इस शर्त पर हटा दी कि इन वाहनों के एक्स शोरूम दाम की एक फीसद कीमत का भुगतान हरित उपकर के रूप में करना होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण राशि के रूप में देय एक फीसद राशि का भुगतान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को किया जाएगा जो किसी सार्वजनिक उपक्रम के बैंक में एक अलग खाता खोलेगा।
अदालत के 16 दिसंबर 2015 के आदेश में संशोधन का निर्देश आटोमोबाइल कंपनियों की याचिका पर आया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वाहनों का पंजीकरण क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी द्वारा इस शर्त पर किया जाएगा कि वाहन की कीमत की एक फीसद राशि वाहन के निर्माता, डीलर, उपडीलर द्वारा बोर्ड के पास जमा कराई गई है। हालांकि प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले पीठ ने केंद्र की इस आपत्ति को फैसले के लिए खुला छोड़ा कि अदालत की ओर से इस तरह का कर नहीं लगाया जा सकता।
पीठ ने कहा कि वह इस बारे में फैसला बाद में करेगा कि दो हजार सीसी से कम की इंजन क्षमता वाले डीजल वाहनों पर हरित उपकर लगाया जा सकता है या नहीं। पीठ ने 16 दिसंबर 2015 के अपने आदेश में संशोधन के बाद यह निर्देश जारी किया। इस आदेश को 31 मार्च 2016 को बढ़ाया गया था। इससे पहले शीर्ष अदालत ने वाहनों के पंजीकरण पर पाबंदी से बचने के लिए कार निर्माता मर्सिडीज बेंज के एक फीसद पर्यावरण उपकर देने के प्रस्ताव पर शुक्रवार को सुनवाई करने पर सहमति जताई थी।

