Pritam Pal Singh
कानून और न्याय मंत्रालय ने शुक्रवार (25 जनवरी, 2019) को उस याचिका का विरोध किया जिसमें याचिकाकर्ता ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) के घरेलू प्रावधानों में लिंग आधारित भेदभाव का आरोप लगाया। मंत्रालय ने याचिका के विरोध में दाखिल शपथ-पत्र में कहा, ‘याचिका की विषय वस्तु और इसकी संवेदनशीलता के महत्व को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न समुदायों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के प्रावधानों का गहन अध्ययन जरुरी है।’ इसके अलावा कानून मंत्रालय ने भारत के विधि आयोग से यूनिफॉर्म सिविल कोड से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और इसके लिए सिफारिशें करने का अनुरोध किया है।
केंद्र की स्थाई वकील मोनिका अरोड़ा के जरिए दायर हलफनामे में आगे कहा गया, ‘याचिका कानून या तथ्यों पर टिकाऊ नहीं है। इसी तरह की एक याचिका को केरल हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था, जिसने माना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की संवैधानिकता को एक रिट याचिका में दायर नहीं किया जा सकता है।’ मंत्रालय ने केरल हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा, ‘यह तय करना विधानमंडल का काम है कि उत्तराधिकार के मामले में मुसलमानों को नियंत्रित करने के लिए किसी भी कानून को तैयार किया जाए या नहीं।’
दरअसल सहारा कल्याण समिति ने मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव के निर्देश के बाद मंत्रालय ने मामले में अपना पक्ष रखा। सहारा कल्याण समिति का आरोप है कि मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव किया गया था, जहां तक उनकी विरासत के अधिकार का सवाल है। पीआईएल का तर्क है कि महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों के आधे हिस्से के हकदार हैं।